उत्तराध्ययन सूत्र का भव्य वरघोड़ा आज
19 अक्टूबल से उत्तराध्ययन आराधना
चेन्नई. बुधवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जो जीव मंजिल प्राप्त करना चाहता है, स्वयं को शांति और उन्नति के शिखर पर पहुंचाने की तड़प लिए रहता है उसे भवि जीव कहा गया है और जो जीव केवल रास्तों पर ही चलते रहना चाहता है, वह अपनी मंजिल प्राप्त करना नहीं चाहता वह अभवि जीव कहलाता है। ऐसे अभवि जीवों को जीवन में दूसरों को बोझा उठाना पड़ता है। वह सोचता है कि समस्याओं का समाधान है ही नहीं, यह जीवन समस्याओं, कष्टों और बिना टेंशन के हो ही नहीं सकता। वह कभी सोच नहीं सकता है स्वयं भी परमात्मा बना जा सकता है, कोई सदाचारी भी हो सकता है। ऐसे जीवों की सोच कभी बदलती नहीं है।
परमात्मा कहते हैं कि जो धर्म को भोग, सत्ता और भौतिकता के लिए करता है वह कालकूट विष के समान पी रहा होता है। वह भोगों के लिए धर्म का उपयोग करनेवाला दो धारी तलवार को हाथों से उल्टा पकडऩे के समान है।
परमात्मा के समवशरण में अनेकों जीव, देव, मनुष्य आते हैं। वे परमात्मा के वचन सुनते हैं और प्रश्न भी पूछते हैं। उन सभी को भवि जीव कहा गया है। अभवि जीव तो परमात्मा के समवशरण में आते ही नहीं है। यह तीर्थंकर का पुण्य है कि जो उनके पास आ गया वह सुधर जाएगा और मोक्षगामी होगा।
आचार्य भद्रबाहु कहते हैं कि जो उत्तराध्ययन की अखण्ड आराधना करते हैं, इससे प्रमाणित हो जाता है कि वे सभी भवि जीव है। परमात्मा कहते हैं कि यह निश्चित है कि जिसे मोक्ष की तड़प हो जाए, वह उसी भव में संवेग के बल पर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उत्तराध्ययन का सूत्र है कि शिष्य भी ऐसा हो सकता है जो गुरु को भी तिरा सकता है। रिश्तों की महिमा को इसमें बताया गया है। जो श्रुत की आराधना करे उसका क्लेश मिट जाता है और लेश्या पवित्र हो जाती है।
स्वाध्याय अनुशासन है और आराधना श्रद्धा और भक्ति है। ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप की न्यूनतम आराधना करने वाला व्यक्ति भी मोक्ष में जाता है। स्वाध्याय से ज्ञान प्राप्त हो सकता है लेकिन आराधना से ही आत्मा का कल्याण और लक्ष्य प्राप्त होता है। श्रीपाल और मैनासुंदरी ने नवकार की आराधना की और स्वयं के साथ कितने ही जीवों का कल्याण किया। अभवि आचरण कर सकता है लेकिन आराधना नहीं करता है। मरीची के भव में परमाात्मा ने आराधना नहीं की केवल श्रद्धा की तो चौबीस भवों में भटकते रहे और जब श्रद्धा की आराधना की तो उसी भव में भगवान बन गए। जो प्रत्येक जीव में भगवान के दर्शन करता है वही आराधना करता है और स्वयं भगवान बनता है, वही भवि जीव है।
तीर्थेशऋषि महाराज ने आयंबिल ओली की आराधना करवाई। उन्होंने कहा कि श्रीपाल चरित्र में बताया कि जो अपनों पर विश्वास नहीं करते उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है और पूर्व जन्मों के कर्मों के प्रभाव से राजकुमार को भी कुष्ठरोगियों के साथ रहना पड़ता है। श्रीपाल के चाचा अरिदमन द्वारा राज्य में विद्रोह कर देने पर उसकी मां जान बचाने के भय से अरिदमन के सैनिकों से बचते हुए अपने छोटे बच्चे शिशुपाल को साथ लेकर जंगलों में दौड़ती रहती है। भयानक जंगल और घो अंधकार में छिपते हुए वह आगे बढ़ती जाती है और रास्तेे में उसे बहुत सारे व्यक्ति जो सारे कुष्ठ रोगियों का दल दिखाई देता है और वह उनसे शरण मांगती है। राजा के सैनिक आकर उनके स्पर्श से रोगग्रस्त हो जाने के भय से वहां से दूसरी ओर चले जाते हैं। रानी श्रीपाल के साथ उनके दल में शामिल हो जाती है और कुछ समय बाद श्रीपाल को कुष्ठ रोग हो जाता है। रानी को बहुत दु:ख होता है और वह उसके लिए औषधि लेने के लिए जगह-जगह जाती है और पुन: लौटने में ज्यादा देरी होने पर वह कुष्ठरोगियों का दल वहां से रवाना होकर आगे बढ़़ जाता है। श्रीपाल राजकुमार होने के कारण उसका व्यक्तित्व देख उसे उस सरदार घाोषित कर दिया जाता है और एक समय वह दल उज्जैन पहुंचता है और वहां पर श्रीपाल की मुलाकात मैनासुंदरी से होती है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अमृत कभी भी पिया जा सकता है, परमात्मा से मिलने और उनकी वाणी को सुनने का कोई निश्चित समय नहीं होता है, कभी भी किया जा सकता है। जो अंतिम देशना पूर्व के २३ तीर्थंकरों ने नहीं दी ऐसा ज्ञान परमात्मा प्रभु महावीर ने अपने अंतिम समय में अनवरत १६ प्रहर तक जीवमात्र के कल्याण के बरसाया है। आज के समय में दुनिया को इसकी सख्त आवश्यकता है, उत्तराध्ययन सूत्र को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाना होगा और भगवान महावीर के निर्वाण कल्याण की वाणी और अंतिम देशना से इस संसार को लाभान्वित कराना होगा।
गुरुवार को उत्तराध्ययन का भव्य वरघोड़ा प्रात: सीयू शाह भवन से प्रस्थान कर एएमकेएम पहुंचेगा और १९ अक्टूबर से २४ नवम्बर तक उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन प्रात: ८ से १० बजे तक कराया जाएगा।