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तीर्थंकर परमात्मा की एक ही भावना सर्वत्रः सुखी भवन्तु लोकः आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

तीर्थंकर परमात्मा की एक ही भावना सर्वत्रः सुखी भवन्तु लोकः आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर

आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर का चातुर्मास परिवर्तन होने के बाद कल किलपाॅक स्थित एससी शाह भवन में पदार्पण हुआ। उन्होंने वहां प्रवचन देते हुए कहा परमात्मा की एक विशिष्ट खूबी है कि हम जो दूसरों के लिए प्रार्थना करते हैं तो वे पहले सुनते हैं, आप अपने लिए प्रार्थना करेंगे तो उसको बाद में सुनेंगे। तीर्थंकर परमात्मा की एक ही भावना सर्वत्रः सुखी भवन्तु लोकः है। वे जगत के सातवाह यानी संघपति है क्योंकि मोक्षनगर का संघ उन्होंने निकाला है जो उनके साथ में जुड़े वे सब मोक्ष में चले गए। अभी भी मोक्ष जाना है तो परमात्मा से जुड़ जाओ। हमारे मन के जो भाव, अपेक्षा है वे सब जानते है, वे केवली ज्ञानी है, सर्वज्ञ है, वे अनंत सिद्ध है तो क्या वे हमारे मन की बात नहीं जानते?

शिवमस्तु सर्व जगतः यानी पूरे जगत का कल्याण हो। प्रार्थना में बहुत बड़ी शक्ति है। हमारा भी यह कर्तव्य है कि हम दूसरों के लिए प्रार्थना करें। सबको सुखी बनाने का प्रयास करें। खुद के लिए तो कोई भी प्रार्थना करता है लेकिन हमने स्वार्थवश दूसरों के लिए कभी नहीं किया।
शास्त्रकार भगवंत कहते हैं सुखी बनने का सरल उपाय यही है कि आप दूसरों के लिए प्रार्थना करो, चिंता करो इससे पुण्य का बंध होता है।
उन्होंने कहा आज सब विश्व मैत्री की बात करते हैं लेकिन हमारी भावना हो कि सारे विश्व में सब सुखी बनें।
हमारे जीवन में परमार्थ की भावना हो। महापुरुषों ने कहा है परमात्मा से भी कभी झगड़ा कर लिया करो, भक्तों को सब छूट है। प्रभु को उपालम्भ दो। एक कवि ने उपालम्भ दे दिया कि आपने भव्य जीवों को तो तार दिया, लेकिन किसी अभव्य जीवों को तारें तो महानता होगी।
ऐसे उपालम्भ प्रभु को देना चाहिए। शास्त्रों में इसके कई उदाहरण भरे हैं। उन्होंने कहा प्रभु की वाणी को भावित बनाना है। प्रवचनों का श्रद्धा से मनन चिंतन करना चाहिए। आचार्य गुरुवार को कुरुक्कुपेट जाएंगे जहां चार दिन रुकेंगे।  

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