श्री जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि के सानिध्य में वीर निर्वाण कल्याणक के उपलक्ष्य में जयपुरंदर मुनि ने कहा तीर्थंकरों के कल्याणक के दिन सभी जीवो के लिए कल्याणकारी होते हैं।
भगवान महावीर स्वामी जिन्होंने अपनी आत्मा का कल्याण किया एवं दूसरों को भी बोध देकर उन्हें भी कल्याण का मार्ग बताया। ऐसे कल्याण करने वाले तीर्थंकरों का नाम मात्र लेने से भी अनंत पुण्य का उपार्जन होता है।
धनतेरस के प्रसंग पर विशेष प्रवचन देते हुए मुनि ने कहा आज हर व्यक्ति धनवान बनना चाहता है। कोई भी दरिद्र नहीं बनना चाहता। जहां दरिद्रता है, वहां लक्ष्मी टिक नहीं सकती है । व्यक्ति को मन से कभी दरिद्र नहीं बनना चाहिए। धन तो आता और जाता रहता है।
निर्धनी व्यक्ति भी धैर्य, पराक्रम एवं मेहनत के बलबूते पुनः धनवान बन सकता है। लक्ष्मी का स्वभाव चंचल होता है। वह कभी किसी के यहां एक समान नहीं रहती है। लक्ष्मी के अप्रसन्न होने पर व्यक्ति एक क्षण में करोड़पति से रोडपति बन जाता है।
लक्ष्मी का वास वहीं होता है जहां आपस में प्रेम, स्नेह बड़ों के प्रति आदर भाव, सदाचार आदि सद्गुणों हो । लक्ष्मी पुण्य की दासी होती है। व्यक्ति को लक्ष्मी का दास बनने की जरूरत नहीं है। जहां पुण्य प्रबल होगा, वहां सेहज ही लक्ष्मी की कृपा बरसती रहेगी।
कमल पर स्थित लक्ष्मी का रूप यही संदेश देता है कि जिस प्रकार कीचड़ में ही कमल खिलता है, उसी प्रकार संघर्ष में ही जीवन में सुख – समृद्धि रुपी कमल खिल सकता है। इस अवसर पर आचार्य रायचंद्र द्वारा रचित भगवान महावीर का चौडालिया के माध्यम से भगवान महावीर के जीवन चरित्र भी प्रस्तुत किया गया।
इससे पूर्व प्रात 8:00 से 9:00 बजे दीपावली पर्व आराधना के अंतर्गत भगवान महावीर की अंतिम वाणी रूप उतराध्ययन सूत्र के 15 अध्ययनों के मूल पाठ का वांचन किया गया जिससे सुनने बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।