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ज्ञान वाणी

तीर्थंकरों का चरित्र इत्र से भी अधिक होता पवित्र 

तीर्थंकरों का चरित्र इत्र से भी अधिक होता पवित्र 
गुंटूर-विजयवाडा हाइवे स्थित ह्रींकार  तीर्थ में आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजयजी,मुनि भुवनरत्न विजयजी एवं साध्वी जी श्री प्रावीण्यनिधि, श्री संयमनिधि श्री के पावन सान्निध्य में श्री पार्श्वनाथ परमात्मा का जन्मकल्याणक बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया।
मुनि श्री ने कहा कि परमात्मा जन्म लेने के साथ ही स्व-पर का कल्याण करते हैं,इसलिए उनका कल्याणक मनाया जाता है।तीर्थंकरों का चरित्र इतना पवित्र होता है कि उनके कल्याणक के समय नरक में रहने वाले जीवों को भी क्षण मात्र के लिए सुख की अनुभूति होती है।हमें इत्र लगाकर नहीं,अपितु महापुरुषों के चरित्र को अपनाकर जीवन को पवित्र बनाना है।
हम नाम के लिए नहीं,अपितु अच्छे व सच्चे काम के लिए अपना दाम लगाए।प्रभु पार्श्वनाथ के जीवन चरित्र से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हम दुर्जन के प्रति दुर्भावना न लाए अपितु उसके भीतर भी सद्भावना जगाने का प्रयास करें। भाव के बदलते ही भव बदल जाते है।
जिसकी जैसी भावना होती है,उसे वैसी ही कार्यसिद्धि होती है।मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है।  विषयों के प्रति आसक्त मन ही हमें बंधन की ओर ले जाता है और वीतरागता में आसक्त मन हमें मोक्ष की ओर ले जाता है।जिसका मन और इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं होता वह प्राणी अयोग्य कहलाता है और अयोग्य प्राणी में समता भाव का संचार नहीं होता।
सद्भावना से ही शांति की प्राप्ति होती है।जिसमें शुभ भावना नहीं होती उसे शांति व सुख की प्राप्ति भी नहीं होती।मोह-विषाद के विष से व्याप्त जगत में शुद्ध भावना के बिना विद्वान पुरुषों के मन में भी शांति का संचार नहीं होता और शांति के अभाव में सुख की उपलब्धि भी नहीं होती।
मन के अच्छे रहने पर भावना भी शुभ रहती है।जो विरक्त भाव वाला,राग द्वेष रहित होता है उसका जीवन शोक रहित बन जाता है। 1 जनवरी 2019,मंगलवार की मंगलवेला में मुनिद्वय श्री का  विजयवाडा के राजेन्द्र भवन में पावन पदार्पण होगा,जहाँ प्रवचन के साथ नूतन वर्ष का मांगलिक भी श्रवण कराएंगे।

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