नागदा जं. निप्र- महावीर भवन में महासति पूज्य दिव्यज्योतिजी म.सा. ने कहा कि तिर्थंकर बनने के लिये सर्वप्रथम अपने शत्रुओं को बाहर निकालना पड़ता है। जैसे लोभ, मान, माया, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लालच कोई भी नकारात्मक उर्जा अपने भीतर नहीं आने देकर इन सभी का त्याग कर 12 वर्ष 6 माह तक पद्मासन की मुद्रा में विराजित होकर ध्यान मग्न रहकर कठिनतम साधना कर सर्वत्र मानव को जीवन जीने के सिद्धान्त, नियमो का पालन करते हुए सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मा स्वरूप भगवान को मानकर प्राणी मात्र को जियो और जीने दो के माध्यम से शुद्ध सात्विक एवं दीर्घ जीवी हेतु हेतु कई उपाय बताये। महासति पूज्य काव्याश्रीजी एवं नाव्याश्रीजी ने कहा कि हमें जो मानव जीवन प्राप्त हुआ है उसमें अर्थ के साथ जीवदया एवं मानव सेवा के माध्यम से किसी भी दुःखी की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म हैं।
मीडिया प्रभारी महेन्द्र कांठेड एवं नितिन बुडावनवाला ने बताया कि तेले की लड़ी इन्दुजी लोढ़ा की थी। अतिथि सत्कार का लाभ संतोषजी मोहितजी रोहितजी कोलन ने लिया। संचालन अनिल पावेचा ने किया एवं आभार श्रीसंघ अध्यक्ष प्रकाशचन्द्र जैन लुणावत एवं सतीश जैन सांवेरवाला ने माना।
दिनांक 06/09/2022
मीडिया प्रभारी
महेन्द्र कांठेड
नितिन बुडावनवाला