चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वीवृंद कंचनकंवर व डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा कि धर्म के दो प्रकार हैं- एक रियल और दूसरा रिलेटिव।
रिलेटिव किसी से जुड़ा होता है, कान से सुनना, मुंह से बोलना, मन से एकाग्रता उनका धर्म है। शरीर और इंद्रियों का धर्म रिलेटिव धर्म है, स्थायी नहीं। इसी प्रकार माता, पिता, पुत्र, पड़ौसी का धर्म भी संबंधी और तात्कालिक धर्म है। यह तो हम अनादीकाल से निभाते आ रहे हैं।
रिलेटिव धर्म से हमें रियल धर्म सत्य में आना है। तात्कालिक से त्रैकालिक सत्य धर्म में आना है। सत्य के तीन प्रकार है- पहला प्रतिभासित सत्य जो स्वप्न है, दूसरा व्यावहारिक सत्य जो वर्तमान में है पर भूत-भविष्य में नहीं, तीसरा परमार्थिक सत्य जो त्रैकालिक धर्म है, जिसे एक बार प्राप्त कर लिय तो सदैव साथ रहेगा। यह आत्मा का रियल धर्म है।
नमिराजा इंद्र को कहते हैं कि मैं इसी परमार्थिक और वास्तविक धर्म को प्राप्त करने के लिए अग्रसर हंू। क्रोध, मान, माया को जीतकर उसे प्राप्त करना है। कषायों को जीत लिया तो आत्मा को भी जीत लिया। क्रोध, मान, माया, लोभ का क्षय होने से केवलज्ञान, केवलदर्शन प्राप्त हो जाए। मनुष्य को स्वयं की उपेक्षा से क्रोध आता है, स्वयं को बड़ा और दूसरों को तुच्छ समझने से मान बढ़ता है, अपनी गलतियों को छिपाने में माया करता है और संग्रह करने के लिए लोभ करता है। साध्वी नीलेशप्रभा ने कहा कि प्रभु ने उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि यह जीवन असंस्कृत है।
इसका आयुष्य टूटने पर दुबारा साधा नहीं जा सकता और घटने पर बढ़ाया नहीं जा सकता। कोई भी अपना आयुष्य दूसरे को प्रदान नहीं कर सकता। चार चीजें बताई हैं- आयुष्य घटे, तृष्णा बढ़े, वीतराग न बढ़े न घटे और पुद्गल परमाणु घटते भी और बढ़ते भी हैं। अंत से पहले धर्मध्यान कर लें तो जीवन मंगलमय बने, मृत्यु कभी भी आ सकती है। धर्म के कार्यों में व्यक्ति अकसर बहाने बनाता है और अपने कल्याण में स्वयं बाधक बनता है।
धर्म किया तो इस जीवन और भव-भव में व्यक्ति पार पाता है। यही एकाग्रता जिनवचनों में रहेगी तो आत्मा गंतव्य प्राप्त कर लेगी। पुच्छीशुणं सम्पुट की सामूहिक रूप से साधना साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने करवाई। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।
5 अक्टूबर को नवपद ओली आराधना, श्रीपाल चारित्र, सायं ८ से ९ बजे तक नवकार महामंत्र का सजोड़े जाप तथा पुच्छिशुणं प्रतियोगिता आयोजित होगी। शरद पूर्णिमा पर १५-१५ सामायिक के साथ रात्रि जागरण होगा।