पुज्य जयतिलक जी म सा ने बताया कि तप मार्ग कर्म निर्जरा का प्रमुख साधन, अमोघ शस्त्र है! कर्म विलग हुए बिना आत्मा कर्म से मुक्त नहीं हो सकती है! तप के बिना कोई जीव मोक्ष नही जा सकता है यहाँ तक केवली भगवंत भी अघाती कर्मो को क्षीण करने तप करना होता है! तप जैन धर्म का श्रंगार है । जिनेश्वर देव ने तप को मोक्ष का मार्ग बताया ! तप के दो तप भेद आभ्यन्तर एवं ब्राह्म !
बाह्य तप से इन्दि्र्य, कषाय आत्म उत्तेजना शांत होती है! मन भी शुद्ध होता है! मन वचन काया को वश में करने से तप मार्ग आम है। शरीर से रक्त माँस घटता है जिससे स्वस्थ रहता है। शरीर बल धटता है किन्तु आत्म बल बढ़ता है! कर्म निर्जरा में शरीर को साथी बनाने के लिए तप करना आवश्यक होता है! तप के बारह भेद है।
पहला भेद अनशन तप: अल्पकालीन एवं याव जीवन। अल्पकालीन अनशन तप में नवकारसी, पोरसी, आयंबिल, निवी आदि! एक नवकारसी भी शुद्ध भाव से कर लेते है तो नरक गति टल जाती है। नवकारसी करने में हर कोई सक्षम है! किंतु प्रमादवश जीव को नवकारसी भी भारी लगती है! जीससे मानसिक एवं शारीरिक बल घटता है। जैसा चिंतन करते है वैसा शरीर हो जाता है! जैसे बच्चों को समझाया जाता है वैसे अपने मन को समझाओ जिससे मन सकारात्मक दिशा में जाता है। नवकारसी को भी कर्म क्षय में सहयोगी बताया। नवकारसी, पोरसी, डेढ़ पोरसी, दो पोरसी, एकाशन, उपवास और आगे की तपस्या भी हो जाती है !
भावों की तेजी को कर्म निर्जरा अधिक से अधिक होती है। धैर्य, मानसिकता, आत्म बल बढ़ता है । धर्म ध्यान में कभी विराम नहीं लगाना! पाप कर्मों को विराम, लगाओ ! यह जीवन हमें कर्म काटने के लिए मिला। खाना पीना तो भव भव में करते आए। किंतु कर्म काटने का अनुपम अवसर मिला है तो अवसर का लाभ उठाओ! मन परिवर्तन कर तप मार्ग में आगे बढ़ो! जब तक बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम है तब तक लाभ उठा लो ! पुण्यवाणी का उदय होगा! जिसमे शाता बनी रहती है! जीव को तप से भावित करते रहो! नवकारसी से छह मास तक की तपस्या अनशन का भेद है। शरीर का श्रृंगार आत्मा का विकार राग बढ़ता है! जिससे कर्म बढ़ते है। तप से जो रुप मिला है वह कितना भी सजा लो जो नहीं मिल सकता !
जैसे कोष्टगार जो घास फूस, पेपर गला कर बनाया जाता है उसको साफ करने का प्रयत्न कर लो वह साफ़ होने वाला नहीं है वैसे ही यह मल मूत्र, कफ से भरा शरीर कभी शुध्द होने वाला नहीं! भगवान कहते है शरीर को सुगंधित बनाने का सर्वोतम उपाय तप है यदि भाव शुद्ध बन गये लेश्या परितकृत हो जायेगी तो चंदन और गुलाब की खुशबू आने लग जायेगी! वासुदेव श्रीकृष्ण जब काल कर गये तो बलदेव कंधे पर छह महीने लाध कर फिरते रहे! जब तक सुगंध आती रही। बलदेव को लगा कृष्ण जीवित है किंतु छह महीने पश्चात जब दुगंध आने लगी तब
उस मृतदेह का विसर्जन कर दिया। संचालन मंत्री नरेंद्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी।