माधावरम्, चेन्नई 21.07.2022 ; तपस्या आत्मोत्थान का मार्ग है। कर्म निर्जरा का अनुपम सौपान है। उपरोक्त विचार जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम्, चेन्नई में मुनि सुधाकर ने कहें। मुनिश्री ने तपस्वी मुनि भीमराजजी के जीवन प्रसंगों को बताते हुए कहा कि तपस्या के साथ हमारा कषाय उपशांत बने। क्रोध, मान, माया, लोभ कम हो। अहंकार को छोड़ना सबसे बड़ी तपस्या हैं। तप बढ़ने के साथ में ताप घटना चाहिए। मुनि श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि तपस्या आडम्बर रहित होनी चाहिए। उसके निमित्त भोज की प्रथा नहीं होनी चाहिये। भगवान महावीर ने बारह प्रकार की तपस्याएं बताई है। उनमें निराहार तपस्या का प्रमुख स्थान है। जिनका आत्मबल मजबूत होता है, वे ही इस प्रकार की तपस्या कर सकते हैं। भगवान महावीर ने अहिंसा, संयम और तपस्या की त्रिवेणी में स्नान करने पर बल दिया है। तीनों का गहरा सम्बन्ध है। तप के बिना संयम नहीं और संयम के बिना अहिंसा की साधना नहीं हो सकती। असंयम और उपभोगवादी मनोवृत्ति से हिंसा का जन्म और विस्तार होता है। आज जो हिंसा और भष्ट्राचार की समस्या का विकराल रूप दिखाई दे रहा है, उपभोगवादी मनोवृति उसका प्रमुख कारण है।
मुनि श्री नरेशकुमार ने कहा कि विवेक पूर्वक तपस्या करने से हमारी वृत्तियों का शोधन और परिवर्तन हो जाता है। तेरापंथ ट्रस्ट माधावरम् द्वारा तपस्वी श्री सोहनलाल रायसोनी, श्रीमती विमला रांका, श्रीमती राजकुमारी सेठीया, श्रीमती कविता रायसोनी के आठ की एवं सुश्री एकता बाफणा, बणियमबाड़ी के नव की तपस्या का साहित्य, तपोभिनन्दन पत्र द्वारा सम्मान किया गया।
स्वरुप चन्द दाँती
मीडिया प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट, माधावरम्
सहमंत्री
अणुव्रत समिति, चेन्नई