दिवाकर भवन पर चल रहे पर्युषण पर्व के अंतर्गत आज प्रथम दिवस पर अंतगढ सूत्र का वाचन तत्व चिंतिका महासती श्री कल्पदर्शना जी ने किया अंतगढ़ सूत्र में 90 चरित्र आत्माओं का तप करके मोक्ष जाने का वर्णन किया गया है। जिसके श्रवण मात्र से पाप कर्म के निर्जरा होती है। भारतीय संस्कृति तप प्रधान संस्कृति रही है तप से जीवन को पावन करने का राजमार्ग है यह उद्बोधन दिवाकर भवन में विराजमान जिनशाशन चंद्रिका प्रियदर्शना जी म.सा ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का एक भी महात्मा ऐसा नहीं होगा जिन्होंने जीवन में तप ना किया हो। हमारे जिनशासन में छोटे से छोटा व बड़े से बड़े तप का विधान है तप जीवन का स्त्रोत है तब जीवन में जलती हुई ज्योत है।
तप से होती कर्मो की निर्जरा तप ही मोक्ष मार्ग का स्त्रोत है। आपने अंतगढ सुत्र का सार गर्भित विवेचन किया।उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री संघ अध्यक्ष इंदरमल दुकड़िया एवं कार्यवाहक अध्यक्ष ओमप्रकाश श्रीमाल ने बताया कि श्रीमति मधुजी सोनी ने 14 उपवास, मनीष जी मनसुखानी ने 4 उपवास के प्रत्याख्यान लिये। 24 से 26 सामुहिक तेले होगे। प्रतिक्रमण सायं 6:45 बजे पुरूषो का रंगुजी स्थानक महिलाओ का दिवाकर भवन के साथ चोपाटी कस्तुर स्वाध्याय भवन पर भी रहेगा। आतिथ्य सत्कार का लाभ श्रीमान सुशीलजी विजयजी हर्ष जी कोचट्टा एवं प्रभावना का लाभ समाजरत्न बसंतीलालजी धनसुखजी अनुकूलजी चोरडिया ने लिया। धर्म सभा का संचालन महामंत्री महावीर छाजेड़ ने किया।