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तप के साथ क्षमा होना तप का सबसे बड़ा श्रृंगार

तप के साथ क्षमा होना तप का सबसे बड़ा श्रृंगार

चेन्नई. बुधवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेन्टर में विराजित उमराव ‘अर्चनाÓ सुशिष्या साध्वी कंचनकंवर, साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने कहा कि प्रत्येकभवि आत्मा का चरम और परम लक्ष्य है मोक्ष को प्राप्त करना।

उसे प्राप्त करने के लिए प्रभु ने चार मार्ग बताए हैं- दान, शील, तप और भाव। दूसरी तरफ से ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की मुक्ति प्राप्ति में साधन रूप में ही तप की परिगमना की गई है। मोक्ष प्राप्ति के लिए तपस्या आवश्यक बिन्दु है।

इसके बिना कोई भी कर्म निर्जरा नहीं कर सकता। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि करोड़ों भावों के संचित कर्म क्षय करने के लिए तपश्चर्या प्रमुख साधन है। अनादीकाल से कर्मों ने आत्मा को घेर रखा है उससे मुक्त करने के लिए तप भी एक साधन है, उपाय है। इससे संचित कर्म तोड़े जा सकते हैं।

दशवैकालिक सूत्र में कहा है कि इस लोक में सुख प्राप्ति की आकांक्षा से तपश्चर्या न करें। तपस्या देखादेखी या परंपरा अनुसार की जाती है तो बुरा नहीं है, जो भी लक्ष्य है, वह हितकारी ही होता है।

तपस्या को इस लोक में भौतिक समृद्धि, यश-कीर्ति फैलाने या स्वार्थ के लिए या परलोक में सुख की कामना से भी न करें। वीतराग प्रभु ने कहा है कि आत्मा पर कर्म कालिमा छाई हुई है, जिसने आत्मा की शक्ति को धूमिल कर दिया है, उन्हें निर्जरित करने, क्षय करने के लिए ही तपश्चर्या की जानी चाहिए। क्षमापर्व के साथ तपस्या के पच्चखान हो रहे हैं। तप के साथ क्षमा होना ही तप का सबसे बड़ा श्रृंगार है।

तप कर्म निर्जरा के साथ क्षमा गुण होना सोने में रत्न समान है। तप हमें तत्काल पवित्र करता है। हमारी आत्मा को पवित्र-पावन करने की क्षमता तप में है। हाल ही में पर्यूषण पर्व के दौरान अनेकानेक महापुरुषों के उदाहरण हमने सुने हैं। एक नवकारसी का तप भी सौ वर्ष का नारकी आयुष्य क्षय करता है। संकल्प करें कि ज्यादा तपश्चर्या न कर सकें तो नवकारसी तप जरूर करें, जो कर्म निर्जरा में सहायक बन सकेगा।

धर्मसभा में पिंकी संचेती, आभा संचेती, शिक्षा बोहरा, शालिनी बंब, राजकुमारी नाहर, चंचलदेवी लुणावत के ९ के प्रत्याखान हुए। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।

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