चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वाधान में श्रावक के 12 व्रत शिविर के अंतर्गत चौथे व्रत का विवेचन करते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा आत्मा में रमन करना ही ब्रह्मचारी है।
ब्रह्मचर्य की महिमा इतनी है कि देवता भी ब्रह्मचारी को नमन करते हैं। जैनागमों में तपों में सर्वश्रेष्ठ तप ब्रह्मचर्य बताया है। इस चौथे व्रत को धारण करने वाला श्रावक असीम काम काम वासना के दंगल से बच जाता है। उसका शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं ।
यह व्रत दांपत्य जीवन को सुखमय और शांतिपूर्ण बनाता है और इसके द्वारा पति और पत्नी का एक दूसरे पर विश्वास कायम रहता है। इस व्रत से पशु के समान निरंकुश कामवासना पर अंकुश लग जाता है ।
वैसे यह व्रत बहुत सामान्य लगता है क्योंकि सामाजिक व्यवस्था एवं कानून की दृष्टि से भी ऐसा ही विधान है लेकिन यह व्रत इसलिए विशेष है क्योंकि इससे व्यक्ति संसार में होने वाले सभी दुराचार व्यभिचार के पाप से बच जाता है । इससे सहज ही परस्त्री गमन वैश्या गमन रूपी घृणित कुव्यसनों का त्याग हो जाता है।
जबकि एक श्रावक को शीलवान सदाचारी, व्रतधारी रहते हुए दृढ़तापूर्वक चौथ व्रत का पालन करना चाहिए। श्रावक के चौथे व्रत के अतिचार बताते हुए निष्कलंक बेदाग रहते हुए आंशिक दोषों से भी बचने के लिए प्रेरणा दी गई। धर्म सभा के अंत में जयगच्छीय श्राविका स्वर्गीय सुवाबाई सिंघवी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।