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तपस्या के यज्ञ में कर्मों की आहूति देना है सच्चा यज्ञ: साध्वी डॉ.सुप्रभा

तपस्या के यज्ञ में कर्मों की आहूति देना है सच्चा यज्ञ: साध्वी डॉ.सुप्रभा

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने चरम तीर्थेश भगवान महावीर की अंतिम वागरना उत्तराध्ययन सूत्र के मूल पाठ का वाचन किया और 25वें अध्ययन की विवेचना में जयघोष और विजयघोष दोनों भाईयों के बिछुडऩे और जयघोष के दीक्षित होकर अपने भाई विजयघोष जो उनको मृतक समझकर तर्पण निमित्त यज्ञ, ब्राह्मणभोज करता है उसके पास जाकर उसे यज्ञों में होने वाली हिंसा आदि से मुक्ति हेतु धर्म का वास्तविक मर्म समझाकर प्रतिबोध देते हैं।

जो पांच महाव्रत का पालन करते हैं, स्वजनों के प्रति आसक्ति-शोक नहीं करते, प्रभु वाणी में रमण करते हैं वही सच्चे ब्राह्मण हैं, मात्र सिर मुंडाने, दिखावा करने से नहीं हो सकते। जो समत्वधारी, ब्रह्मचर्यपालन करता है, ज्ञान से मुनि कहलाता है, तप से तपस्वी बनता है।  किसी भी जाति में जीव उत्पन्न होता है तो अपने कृतकर्मों से होता है, कार्य विशेष से नहीं।

सच्चा यज्ञ करना है तो अपने तपस्या रूपी यज्ञ में कर्मों की आहूति देनी है। संशय मिटने और मिथ्याधारणा दूर होने पर विजयघोष मुनि के वचनों को सम्यकरूप से ग्रहण कर नतमस्तक होकर दीक्षित होता है और उन्हें पता चलता है कि मेरे बिछुड़ा हुआ भाई जयघोषमुनि है। दोनों भाई तपश्चर्या औ संयम साधना से सिद्धी पद पाते हैं।

संसार में दो प्रकार के मनुष्य हैं, पहले राग-द्वेष के कारण संसार में आसक्ति रखनेवाले गीली मिट्टी के गोले के समान हैं व दूसरे सूखी मिट्टी के गोले के समान संसार में राग, द्वेष रहित विरक्ति से रहते हैं।

छब्बीसवें समाचारी अध्ययन में प्रभु ने साधुचर्या के साथ-साथ साधु के व्यवहारिक जीवन में भी व्यवस्था बनाए रखने के लिए दस प्रकार की समाचारी का पालन करने का मार्ग बताया है।

शिष्य द्वारा अपने गुरु की आज्ञा का पालन करना, उनसे कुछ छिपाना नहीं, अपने मन का संशय गुरु से समाधान करना आदि व्यवहारिक आचार पालन करेंगे तो व्रतात्मक आचार पालन स्वत: हो जएगा, साधक निर्विघ्न साधना कर सकता है। इन्हीं दस समाचारी का पालन यदि गृहस्थ जीवन में करें तो बड़ों का सम्मान और छोटों की जागरूकता बनी रहती है।

इनसे परिवारों में बिखराव की स्थिति रूकती है और आपसी प्रेम, समन्वय, सामंजस्य व सद्गुणों का विकास होता है। बड़े-बुजुर्गों के ज्ञान और अनुभव का लाभ और मार्गदर्शन युवापीढ़ी को प्राप्त होता है तथा अकरणीय कार्य और अज्ञानतासे आनेवाले कष्टों से बचकर बड़ों का सम्बल प्राप्त होता है।

बुजुर्गों के ज्ञान की बराबरी युवा नहीं कर सकते उनका हृदय कांच के समान बताया गया है तथा युवाओं का हृदय लोहे के समान, दोनों में सामंजस्य बना रहने तो सुंदर और सुदृढ़ वस्तु बन सकती है।  जहां बड़ों का रखा जाता है मान और छोटों का ध्यान, वहीं कभी नहीं आते आंधी तूफान।

प्रात: सामूहिक पुच्छीशुणं सम्पुट साधना कराई गई और भाग लेनेवालों को ड्रा से पुरस्कार दिए गए। धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने विभिन्न तप के पच्चखान लिए। सिरकाली संघ ने अर्चना सुशिष्यामंडल से वर्ष 2020 के चातुर्मास के लिए विनती रखी।

25 से 27 अक्टूबर को सामूहिक तेला आराधना होगी। 28 अक्टूबर को प्रात: 6.15 बजे से उत्तराध्ययन का अंतिम अध्याय का वाचन और नववर्ष मंगलपाठ होगा। 17 नवम्बर को अर्चना सुश्ष्यिामंडल के सानिध्य में युवाचार्य मधुकर मुनि स्मृति दिवस का आयोजन मैलापुर संघ में होगा। 

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