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तपस्या की पूर्णता देव, गुरु और धर्म की कृपा पर आधारित होती है : देवेंद्रसागरसूरि

तपस्या की पूर्णता देव, गुरु और धर्म की कृपा पर आधारित होती है : देवेंद्रसागरसूरि

बिन्नी नोर्थटाउन में तपोत्सव के तहत गांव सांझी का भव्य आयोजन

श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी के सान्निध्य में सामूहिक तपोत्सव पारणा उत्सव के तहत पहले दिन संघ भवन में गांव सांझी एवं मेहंदी वितरण का कार्यक्रम संपन्न हुआ। शहर के विभिन्न महिला मंडलों की सदस्याओं ने प्रभु की भक्ति की। करीबन एक हज़ार से अधिक महिलाओं ने इस आयोजन में लाभ लिया।गांव सांझी का लाभ शा अशोककुमार मांगीलालजी खिंवसरा परिवार ने लिया। सांझी में आने वाले प्रत्येक महिलाओं को विशेष प्रभावना द्वारा भक्ति कि गई। रविवार को तपस्वियों की शोभायात्रा निकाली जाएगी।

आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि इच्छाओं का निरोध करना ही तप का परिपालन है। जिस प्रकार आकाश अनंत और विशाल है उसी प्रकार इच्छाएं अनंत हैं। इच्छाओं के बीच मानव जीवन यात्रा करता है। मनुष्य ही व्रत नियम और तपस्या कर सकता है। देवता व्रत नियम और तप नहीं कर सकते हैं। पशु का कोई लक्ष्य नहीं होता उसे उसका मालिक जो देता है उतना खा लेता है। किंतु मानव सोच विचार करके कुछ भी कर सकता है। आचार्य ने आगे कहा कि जैन दर्शन में तप की बड़ी महिमा है तपस्वी की अनुमोदना करना व कराने का समान फल प्राप्त होता है।

तपस्या की पूर्णता देव, गुरु और धर्म की कृपा पर आधारित होती है। तप की अनुमोदना करने से जिन शासन की प्रभावना होती है और अनेक लोगों को प्रेरणा मिलती है। तपस्या जीवन से मुक्ति का आधार है। तपस्वी धर्मवान को सम्मान तो देवता भी करते है। सम्मान हमेशा तपस्या करने वालों का होता है। तपस्या आत्मशुद्धि व कर्मनिर्जरा का सबसे बड़ा माध्यम है। तपस्या संत-साध्वी करें या श्रावक-श्राविका सभी के लिए साताकारी व अनुमोदनीय होती है। जो तपस्या नहीं कर सकते वह अनुमोदना करके भी पुण्यार्जन कर सकते है। तपस्या की अनुमोदना का अवसर भी कभी छोड़ना नहीं चाहिए।

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