यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में पुज्य गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्म बन्धुओं संसार उत्पन्न भवी जीवो जैनो के लिए तपस्या एक सामान्य क्रिया है पर अन्य के लिए सामान्य नही। कोई सुनता है कि जैनों ने बिना आहार किये तेला अट्ठाई उपवास, मास खामण किया तो उनको आश्चर्य होता है पर जैन हंसते हुए तप कर लेते है।
डाक्टर भी जैनो के तप पर रिसर्च करने लगे है कि ये कैसे सम्भव है। पर अब विज्ञान भी मानता है कि व्यक्ति चारों आहार का त्याग कर 2-4 महीने जीवित रह सकता है। पर आगम में तो पहले से उल्लेख है कि व्यक्ति चारों आहार का त्याग कर 6 महीने साल भर भी जीवित रह सकता है।
आगम कहते है तप करने से कर्मों की निर्जरा होती है। भगवान कहते है नरक का द्वार बन्द करना है तो तप करो तप से कर्म निर्जरा होती है ये निर्जरा चारों गति के द्वार बन्द कर अनव्याबाध सुख दिलाती है। भगवान कहते है कि लौकिक इच्छाओं के लिए निदान के लिए तप नही करना इस तब को धर्म नहीं मानना, इस तप से अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए देवताओं का आहवाहन करते है।
ये तप अधर्म की श्रेणी में आती है धर्म की श्रेणी में नही, ऐसे तप से कर्म मल दूर नही होते। यदि कर्म मल को दूर करना है तो ऐसा तप करो जो कर्म मल को दूर करे जो तप 6 काय की हिंसा न करे। आज किये जाने वाले तप बाल तप है मासखामण करने वाले भी हिंसा, झूठ, परिग्रह आदि का त्याग नही करते है जब तप के साथ पांच महाव्रत का पालन करते है, सामायिक करते है तो सूक्ष्म पाप का भी त्याग हो जाता है।
तप के साथ संवर अनिवार्य है जबकि लोग तप करके भी घर का सारा कार्य करते है जबकि तप तो पूर्ण सावध प्रवृतियों का त्याग करना चाहिए । शारीरिक साज सज्जा का भी त्याग करना चाहिए। चारों कषाय का त्याग करना चाहिए। यदि तप करना है तो शरीर, परिवार सब भूल कर आत्मा के साथ एकान्त रूप से सम्बन्ध रखो जब आप पिकनिक जाते हो पीहर जाते हो तो आप
रुकने पर भी नही रुकते तब आपको घर की चिन्ता नही होती फिर तप करते समय घर की चिन्ता क्यों। यदि आप तप के साथ आरंभ सांरभ का त्याग करोगे तो घरवाले भी सहयोग देंगे। बिना पाप छूटे तपस्या करने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए ज्ञानीजन कहते है यदि आवश्यक है तो अल्पआरम्भ का त्याग करे।
आगार रख के तप करते हुए सामायिक करो प्रतिक्रमण करो पौषध करो यदि तप सही प्रकार से नहीं की तो तप का सही फल कैसे मिलेगा । तिर्यच भी आहार न मिलने पर कितने दिन भूखे निकाल लेते है परन्तु उन्हें तप का फल नही मिलता क्योंकि ये तप बाल तप है जबकि तप तो विधि के पालन से किया जाये तो ही इसका फल मिलेगा।
जिनवाणी कहती हैं आठ कर्मों को धोने के लिए 18 पाप का त्याग करो तभी मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में आओगे तभी संसार छूटेगा और देह को दुख देने से महाफल की प्राप्त होती है। छह काय की विराधना किये बिना होने वाली कर्म निर्जरा ही कर्म निर्जरा है।
स्वयं के शरीर की घात करना पाप है इसलिए शरीर के छेदन-भेदन कर तप नही करनी चाहिए। जिनवाणी में ऐसे तप का विधान है, जिससे स्व और पर काय दोनो की रक्षा हो दोनो का छेदन भेदन न हो। इसलिए तप के 12 भेद बताये है अनशन, उनोदरी आदि। ये तप किसी प्रकार की लालसा, कामना के लिए नहीं अपितु एकान्त आत्मा की कर्म निर्जरा के लिए करना चाहिए। वैराग्य के साथ उदासीन भाव से तप करना चाहिए। घर में क्लेश करके तरह तरह की डिमांड करके गीत, भोजन, वरघोड़ा आदि करने से तप का फल नही मिलता।
तपस्या करने के साथ अपनी इन्द्रियों को वश में करो, कषायों को शान्त करो, तभी कर्म निर्जरा होगी और तप का सही फल मिलेगा। तप ऐसा करो जिससे न स्वयं की श्रद्धा डिगे ना दूसरो की श्रद्धा डिगे। आपके तप को देखकर दूसरो के मन में तप करने की भावना जगे । गठिसाहियं मुट्ठिसहियं तप भी विवेक के साथ किया जाये तो इस तप से भी मोक्ष मिल सकता है कर्मों की निर्जरा होती है।
अशोक कोठारी ने बताया कि चातुर्मास में प्रतिदिन दोपहर एक से तीन बजे तक नार्थ टाउन में नवकार महामंत्र जाप का आयोजन किया जाता है।