नार्थ टाउन बिन्नी मिल में विराजमान गुरुदेव जयतिलक मुनिजी जी ने बताया कि आत्मा पर लगे कर्म मल को दूर करने के लिए तप का निरूपण किया। तप के बिना आत्मा कर्म मल से मुक्त नही हो सकती। तपस्या से असार तत्व बाहर निकलता है और सार तत्व सुरक्षित रहता है आत्मा में अनादिकाल से कर्मों का आगमन है।
तपस्या आत्मा के लिए करनी है। आत्मा तपेगी तो कर्म मल दूर होगे। आत्मा को तपाने की विधि से यदि आत्मा को तपायेगें तो कर्म मल दूर होंगे जैसे दूध को तपाने के लिए बर्तन की जरूरत पड़ती है। बर्तन को तपाने से दूध भी तपता है दूध के असार तत्व गरम होने पर उड़ जाते है और सार तत्व खोया शेष रहता है उसी प्रकार शरीर को तपाने पर शरीर के सप्त धातु तपते है और साथ ही आत्मा भी तपने लगती है जिससे आत्मा पर लगे कार्य तप कर आत्मा से अलग होने लगते है और आत्मा शुद्ध होने लगती है।
आत्मा को विवेक पूर्ण तपाने के लिए ज्ञान युक्त तप करने का निर्देश भगवान ने दिया है। जिससे आत्मा नये कर्म बंध से बचेंगी तब सचित कर्मो का क्षय होगा और देखते देखते आत्मा कर्मबंध से मुक्त होकर शुद्ध हो जायेगी। भगवान कहते है कि आत्मा मे आस्त्रव रुपी छिद्र है जिससे कर्मों का आगमन होता है यदि आस्त्रव रुपी छिद्रों को रोक दिया तो पहले के संचित कर्मों की
निर्जरा करने से आत्मा कर्मों से रहित हो सकेगी। इसलिए जिनेश्वर ने 12 तप के भेद अनशन आदि बताये।
रोगी व्यक्ति, कमजोर व्यक्ति या गर्भवती महिला भी गंठिसहिय मुट्ठिसहियं तप को पालन कर सकते है। भोजन कर के तिविहार चौविहार का पच्खाण कर सकते है और जब भोजन करना हो तो नमोक्कार सूत्र बोल कर खा सकते हैं ये तप बिना ताले चाबी का तप है। ये तप किसी भी हालत में कहीं भी कर सकते है। नवकारसी का तप भी सरल है जो प्रतिदिन कर सकते है।
शुगर, बीपी, गैस, एसिडिटी की बीमारी वालो को नवकारसी का तप आवश्यक करना चाहिए नवकारसी से ये रोग शान्त हो जाते हैं। रोज नवकारसी करने से रात्रि भोजन त्याग करने से एक महीने में 15 उपवास का फल मिलता है।
भोजन में रति अरति होने से शरीर में प्रमाद होने से पुरुषार्थ का मन न होने से व्यक्ति रात्रि भोजन का त्याग नहीं करता। रात्रि भोजन त्याग से देर रात होटल जाने की इच्छा नहीं होती। रात्रि भोजन त्याग करोगे तो प्रतिक्रमण सामायिक में रुचि बढ़ेगी।
रात्रि भोजन त्याग न होने से शरीर को अनेक रोग घेर लेते हैं। कष्ट भोगना मंजूर है पर रात्रि भोजन त्याग नही कर सकते है। अब तो डॉक्टर भी रिसर्च कर कहने लगे कि रात्रि भोजन मत करो शरीर स्वस्थ रहेगा। डॉक्टर स्वयं भी व्यस्त होने पर भी और फिल्म स्टार भी रात्रि भोजन का त्याग कर रहे है।
रात्रि भोजन त्याग से मांसाहार के दोष से बच सकते है। जब बड़े ही धर्म का पालन नही करेंगे तो बच्चे कैसे धर्म व तप करेंगे। धर्म शरीर व आत्मा दोनों की शुद्ध करता है। इसलिए बाह्य व आभ्यन्तर तप बताये है जिनवाणी में ।
रसनेन्द्रीय को वश में करने के लिए आसक्ति को कम करने के लिए उनोदरी तप करो। मनपसंद भोजन उपलब्ध होने पर भी आपने ऊनोदरी तप किया तो तप होगा और कर्म निर्जरा होगी तप करके पारणे की चिन्ता करके आर्तध्यान रौद्रध्यान करने से कर्मो का बंध होता है; कर्म निर्जरा नही ।
भगवान कहते है आत्मशुद्धि के लिए साधना, तपस्या के समय सिर्फ आत्मा का ध्यान रखो शरीर का नही। धर्म कार्य में लगा समय ही समय का सदुपयोग है सांसारिक कार्य मे लगा समय समय का दुरुपयोग है। श्रावक संघ के साथ साथ महिला मण्डल की सदस्याएं भी चातुमास की व्यवस्थाओं में सहयोग दें रही है।