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तन में स्वस्थता- तपस्या तन, मन, जीवन, को शुद्ध करती है: प्रकाश मुनि जी

तन में स्वस्थता- तपस्या तन, मन, जीवन, को शुद्ध करती है: प्रकाश मुनि जी

सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद

जीवन में चार -→ चीजे मीलना दुर्लभ है- तन मे स्वस्थता, मन मे प्रसन्नता, जीवन में शांति , परिवार का प्रेम यह बात बताते हुए पूज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी महाराज साहब ने फरमाया कि..

1- तन में स्वस्थता- तपस्या तन, मन, जीवन, को शुद्ध करती है। नंद गुरु के घर में आनंद है, आज नंदनी सुमित जी बुपक्या के 30 उपवास है ,परिवार के प्रेम के बिना, सहयोग के बिना पतस्या नहीं होती। साता पूछने में मजा कि साता पुछवाने में मजा !

तप से तन शुद्ध होता है लंघम परम औषधे- तप ऐसी दवा है जो शरीर व कर्मो की गंदगी को साफ करती है। गुरुदेव कहते थे कैंसर हो जाय तो 8 उपवास कर लो । लकवा हो जाये हो 72 घंटे का चोविहार तेला कर लो । तपस्या से शरीर शुद्ध, सुंदर हो जाता है, और वह जीव मोक्ष का आराधक बन जाता है।

2- मन मे प्रसन्नता- मन में खुशी हो तो चेहरे पर चमक दिखती है चहरे पर मुस्कान से दर्दी का आधा दुःख खत्म हो जाता .. संत के दर्शन से। संत के चेहरे पर मुस्कान, माधुर्यता होनी चाहिए, आने वाला प्रसन्न, खुशी से प्रसन्न हो जाय ,संत के पास जो भी आता है वह देने आता है लेने नहीं आता । तुम्हारे पास एक चीज नहीं है? *शांति*.. संत के पास शांति व आर्शीवाद लेने आये इससे बड़ी कोई दोलत नहीं।

दोलत बढ़ती है अशांति बढ़ती है, संतों के पास जो हे वह संतत्व के साथ जीते है, उनके पास शांति मिलती है, जिनके पास कोई अपेक्षा नहीं उनके पास शांति मिलती है।

आने वाला भव ताप, आधी व्याधि से पीड़ीत है, धर्म क्षेत्र और गुरु के पास शांति मिलती है।

3- जीवन में सुख शांति – अनुकुलता मिल जाय यह भी दुर्लभ है यह भाग्य के बिना नहीं मिलती है।

4 – परिवार का प्रेम- यह सबसे दुर्लभ, धन बढ़ता है, परिवार टूटता है। दुनिया से मुलाकात होती है परिवार से मुलाकात नहीं होती। पैसा, साधन सब कुछ है, परिवार में।

प्रेम मिलना दुर्लभ है। पैसा, पुण्य से अधिक परिवार का प्रेम मुश्किल है । समझो – परिवार का प्रेम, समाज का प्रेम, संघ का प्रेम आपकी ताकत है।

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