चेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया हाउस में विराजित साध्वी इंदुबाला ने कहा प्रभु महावीर की वाणी अनमोल है। इस अनमोल वाणी को हमारे जीवन में उतार कर जीवन को निर्मल बनाना है। सुख हमारी आत्मा का स्वभाव है। इस संसार में यह सुख के साधन हमें कभी पूर्ण रूप से सुखी बनाने वाले नहीं हैं।
हमें वास्तव में सुखी बनना है तो सबसे पहले अपने गुस्से, क्रोध और अपनी अपेक्षा को कम करना होगा। इस तन पर हमें ममता व आशक्ति कम करनी पड़ेगी। आखिर में यह तन साथ छोडऩे वाला है। वस्त्र परिवर्तन से मोक्ष नहीं मिलने वाला, तन और मन को परिवर्तन नहीं करोगे तब तक मोक्ष संभव नहीं है। तन की नहीं व्यक्ति के गुणों की पूजा होती है।
प्रवचनमाला में साध्वी मुदितप्रभा ने मैं और मेरा परिवार विषय पर युवओं को संबोधित करते हुए कहा कि परिवार के साथ रहने के लिए हमें पहले यह सोचना है कि कैसे कहना, कैसे रहना और कैसे सहना है। सबसे पहले खुद को शांत रखो एवं स्वयं में बदलाव करो तो परिवार में स्वत: ही शांति आ जाएगी। अगर हमने कथनी और करनी को समझ लिया तो शांति स्वयं आ जाएगी। परिवार के प्रति समर्पण भावना रखें।
उन्होंने कहा परिवार 7 तरह के होते हैं धार्मिक, नैतिक, प्रेमी, संगठित, संस्कारी, श्रद्धालु और सम्यक परिवार। जिस परिवार में व्रत, पच्चखाण, सामायिक व प्रभु भक्ति होती है वह धार्मिक परिवार होता है। नैतिक परिवार वह होता है जिसमें चोरी और जुआ आदि का त्याग होता है। प्रेमी परिवार में हमेशा बड़ों का आदर, गलतियों की क्षमायाचना होती है।
संगठित परिवार में साथ में रहना व तप त्याग सहित पूरे परिवार एक साथ सुयक्त सामायिक करता है। संस्कारी परिवार में सात कुव्यसनों का त्याग होता है। श्रद्धालु परिवार वह है जिसमें देव, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा होती है। अपनी सम्पत्ति का गुप्त दान देकर सदुपयोग करना तथा मैंं आत्मा हूं, मोक्ष की अभिलाषा रखना सम्यक परिवार है।
अंत मे महासती इंदुबालाजी ने मांगलिक प्रदान किया। यह जानकारी किलपाक संघ के अध्यक्ष श्री सुगंचन्द जी बोथरा ने दी।