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तत्त्वत्रयी का संयोग साध्वीजी श्री स्वयंप्रभाश्रीजी म.सा.

तत्त्वत्रयी का संयोग साध्वीजी श्री स्वयंप्रभाश्रीजी म.सा.

सुवर्ण इतिहास का अमर पुस्तक और जीवन को जीवंत (चैतन्यमय) निरिक्षण करनेवाले साध्वीजी को कोटिशः धन्यवाद… साधुवाद…

अद्भूत चारित्रनायक, शासन के शूरवीर *पू.. आ. श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा* के हस्तो से दीक्षित एवं शिक्षित साध्वीजी भगवंत में शासन राग की विविधता – विशिष्टता एक साथ थी। साधना की विशेषता के प्रभाव से अंत समय भी जागृत अवस्था को त्याग के शिखर तक ले गए।

देहत्याग के कुछ समय पूर्व भरतभाई लाडू दादा आदिनाथ के दर्शन करवाने ले गए। तृप्त मन से दादा का मिलन किया। दर्शन-ज्ञान-चारित्र में लीन साध्वीजी को उम्र या अवस्था अवरोधरूप नहीं बनी। भरतभाई अत्यंत उत्कृष्ट भाव से वैयावच्च कर रहे है।

श्री सौधर्म बृहद तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन संघ की वैयावच्च-भक्ति सर्वदा उत्कृष्ट रहती है। दिनरात ट्रस्टीवर्य वाघजीभाई आदि, शशीभाई जैसे श्रावक सदा जागृत है।

अनेक आत्माओ का योगक्षेम कल्याण करनेवाले साध्वीजी भगवंत के शिष्याओं ने समाधि भाव से सेवा की और सद्गुरु को शाता प्रदान करके ऋण चुकाया।

त्रिस्तुतिक जैन संघ का अनमोल रत्न स्मरणीय रहेगा। संघ सेवा शिरमौर साबित हुई।

वैभवरत्न वि.

चेन्नई

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