वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा जो जैसा करता है उसका फल उसे अवश्य ही भुगतना पड़ता है। सुख और दुख का दाता कोई दूसरा नहीं बल्कि स्वयं के कारण ही होता है।
जो व्यक्ति कर्म भोगते समय किसी की नहीं सुनता, फल भोगते समय उसकी भी कोई नहीं सुनेगा। पाप में किसी की भागीदारी नहीं होती। सुख में सब साथ देते हैं, लेकिन दुख में कोई भी मदद नहीं करता है।
मुनि ने एक दोहे के माध्यम से कहा ठोकर लागत एक ही समझे चतुर सुजान । समझदार व्यक्ति एक बार ठोकर लगने पर ही संभल जाता है और अपनी गलती का पुनरावर्तन ना करने के लिए संकल्पित बन जाता है, जबकि मूर्ख व्यक्ति अपने गलती से सबक ना लेने के कारण बार-बार ठोकर खाते हुए खेद प्राप्त करता है।
इंसान के द्वारा भूल होना स्वाभाविक है लेकिन भूल को स्वीकार करना ही सच्ची साधना है। कोई व्यक्ति चाहे पाप छिपाने का कितना ही प्रयास करें लेकिन जिस प्रकार रुई में लिपटी हुई अग्नि लंबे समय तक छुपी नहीं रह सकती उसी प्रकार पाप छिपा हुआ नहीं रह सकता।
पाप भीरु व्यक्ति छोटे पापों में भी सावधानी बरतते हुए अनावश्यक पाप से बचने का प्रयास करता है। व्यक्ति को पाप से घृणा करनी चाहिए पापी से नहीं क्योंकि पापी व्यक्ति में परिवर्तन भी आ सकता है। इस अवसर पर चिराग पिंचा ने 9 की तपस्या का प्रत्याख्यान ग्रहण किया जिसका सम्मान संघ की ओर से किया गया।