टीवी, वाट्सअ व फेसबुक खतरे की निशानी है जो हमारे समाज समाज में रहने वाले लोगों को बिगाड़ रही है। यह कहना है साध्वी महाप्रज्ञा का।
वह कहती हैं कि इन खतरों को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इन सोशल मीडिया के जंजाल में फस कर हम अपनो और अपनी मदारियों को भूलते जा रहे हैं।
अगर हमें अपनी आने वाली पीढ़ी और अपने संस्कारों को बचाना है तेरे जरूरी है कि हम पहले स्वयं रोमांस हो और अपने बच्चों को जागरूक करें।
इस विषय पर चिंतन मनन करने की जरूरत है नहीं तो आने वाले दिनों में ना हम अपने संस्कार बचा पाएंगे और न अपनी अगली पीढ़ी को।
पहले लोग मनोरंजन के लिए सिनेमाघर, थिएटर आदि जाते थे लेकिन आज तो कोई सिनेमा घर बना लिया गया। वाह रे आदमी हमने तो अपनी संस्कृति का दिवाला निकाल दिया।
विश्वभर में भारत की संस्कृति का डंका बजा करता था राज हम अपनी ही संस्कृति को बुलाते जा रहे हैं।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम अपने अस्तित्व को ही भूल जाएंगे। आज जरूरी है कि हम निद्रा से जागे और विलुप्त होती अपनी सभ्यता और संस्कृति पुनः स्थापित करने पर गंभीरता से विचार करें।