चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा प्रभु महावीर ने सत्य का साक्षात्कार करने के पश्चात जन-जन के कल्याणार्थ अनेक सिद्धांत की प्ररूपणा की। भगवान का हर शब्द हर वाक्य अपने आप में एक सिद्धांत है पर मुख्यत: भगवान के तीन सिद्धांत बताए जाते हैं-अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह।
जिस प्रकार 3 नदियों के मिलन स्थान को संगम माना जाता है जो अत्यंत ही पवित्र स्थल गिना जाता है , इसी प्रकार जहां इन 3 सिद्धांतों का संगम हो जाता है वहां जीवन पवित्र बन जाता है। अहिंसा और अपरिग्रह दोनों सिद्धांत आचरण से संबंधित हैं जबकि अनेकांतवाद विचारों से संबंध रखता है । श्रावक के आचार और विचार दोनों में ही शुद्धि होती है। श्रावक का तीसरा गुण बताया गया है सौम्यता।
सौम्य बनने के लिए अनेकांत दृष्टि अपनाना बहुत जरूरी है। वर्तमान में जो कलह, झगड़ा एवं क्लेश का वातावरण हर जगह फैला हुआ है उसको अगर समाप्त करना है तो उस बीमारी की एकमात्र दवा है अनेकांत दृष्टि। भगवान भले ही हमारे समक्ष प्रत्यक्ष उपस्थित नहीं हैं पर उनका सिद्धांत आज भी हर जीव के लिए प्रत्यक्ष पथ प्रदर्शक है।
मार्ग तो भगवान ने बता दिया पर उस पर चलना होगा। सिद्धांत तो जानते हैं लेकिन जब तक उनको जीवन में नहीं अपनाते हैं तब तक मात्र जानने से ही आत्मा का कल्याण नहीं होने वाला है। अनेकांतवाद के सिद्धांत को अपनाने से सारे बिकराव, मनमुटाव, क्लेश दूर हो जाते हैं क्योंकि व्यक्ति स्वयं को ही सही न मानते हुए सामने वाले को भी अपेक्षा दृष्टि से सही मानने लग जाता है।
तीन प्रकार के राग होते हैं- कामराग, स्नेह राग और दृष्टि राग। काम राग और स्नेह राग को छोडऩा फिर भी आसान है लेकिन अपनी बात की पकड़ रूपी दृष्टि राग को छोडऩा कठिन है। अगर यह दृष्टि राग छूट जाए, तो पूरा समाज एक हो सकता है। व्यक्ति को टकराव नहीं सौम्यता करना सीखना चाहिए तभी जीवन सुख शांति पूर्वक व्यतीत हो सकता है।