Sagevaani.com @किलपाॅक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने अष्टान्हिका प्रवचन में कहा पर्यूषण के पांच कर्तव्य बताए गए हैं अमारी प्रवर्तन यानी अहिंसा का आचरण, साधर्मिक भक्ति, क्षमापना, अट्ठम तप और चैत्यपरिपाटी। उन्होंने कहा जगत में हरेक आत्मा का स्वभाव ज्ञान है। जीवों की रक्षा करना ज्ञानाचार है।
उपशम बिना चारित्र का पालन नहीं होता। बड़े दिन जब भी आए, पांच मंदिरों के दर्शन करने चाहिए। वीर्याचार का पालन पांच मंदिर जाने से फलित होता है। चतुर्विध संघ साथ में रहने से उल्लास, अन्य लोगों के हृदय में प्रेम का प्रकाश प्रकट होता है। उन्होंने चैत्यपरिपाटी का एक उदाहरण देते हुए कहा जिनशासन का ध्वज कभी झुकता नहीं है। यह आन- बान- शान का प्रतीक है। उन्होंने कहा झुकना वहीं सफल है, जहां अपने कर्म झुक जाए। हमें कदाग्रह, पूर्वाग्रह और हमारी पकड़ों को झुकाना है। ज्ञानी कहते हैं आप अपनी पकड़ों को छोड़ दो तो प्रभु आपको पकड़ लेंगे।
पांच इंद्रियों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि सबसे संवेदनशील इंद्रिय स्पर्शेंद्रिय है। शरीर में सबसे ज्यादा व्यापकता स्पर्शेंद्रिय की है। इसकी सात परतें हैं। यह हमें दिखता नहीं है लेकिन महसूस होता है। स्पर्श के कारक हर इंद्रियों में शामिल है। लोग कहते हैं हाथ, पैर सभी में इंद्रियों जैसा कंपन है लेकिन जिनशासन कहता है इंद्रियां पांच ही होती है। स्पर्शेद्रिय का पालन करना हो तो अमारी प्रवर्तन का पालन करो। निंदा के भाव से बचना है तो आदर के भाव से साधर्मिक भक्ति करो।
ग्यारह वार्षिक कर्तव्य संघपूजा, साधर्मिक भक्ति, तीन यात्रा यानी रथ यात्रा, तीर्थ यात्रा और अष्टान्हिका यात्रा, देव द्रव्य में वृद्धि, स्नात्र उत्सव, महापूजा, धर्म जागरण, श्रुत पूजा, उझमणा, तीर्थ प्रभावना और शुद्धि यानी भव आलोचना बताए गए हैं। ये ग्यारह कर्तव्य साल में एक बार जरूर करना चाहिए। उन्होंने कहा शुभ काम करते रहो, भले ही आपका मन बिगड़ा रहे। मन का सौंदर्य शुभ काम से ही आएगा। मन तो बहुत चंचल है। अपने मन को मत देखो, आराधना के कर्तव्य को देखो। आज तक हमने अपने मन के विचारों को देखा है। स्नात्र पूजा के भाव में मानव देवलोक के देव- देवियों से भी आगे होते हैं। स्नात्र उत्सव साल में एक बार तो अवश्य करना चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा जहां उल्लास और श्रद्धा होती है, वहां शिक्षा और अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती। इतिहास कहता है कुमारपाल महाराजा की आत्मा का मोक्ष आचार्य हेमचंद्र सूरीजी के पहले होने वाला है।
उन्होंने कहा वाणी से नहीं, विवेक से इतिहास बनता है। शरीर से नहीं, तपस्या से इतिहास बनता है। उझमणा का मतलब है जो तप हमने किया, उसकी अनुमोदना करना। आत्मा की शुद्धि के लिए हमारे पापों की फाइल साल में एक बार गुरु के सामने खोल देनी चाहिए। वैसे पाप की शुद्धि करने का मूलभूत उपाय प्रतिक्रमण है। उन्होंने कहा प्रतिकूलता के अवसर में भी आगे वाले के साथ अच्छा व्यवहार करना सम्यक्त्व का प्रकार है। मंगलवार को गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी महाराज के अवतरण दिवस के उपलक्ष में संघ ने जीवदया के कार्यक्रम घोषित किए।