उपासकों को निरवध, लोकोत्तर कार्य करने की दी पावन प्रेरणा
किड्सजोन (KIDZONE) का हुआ उद्घाटन
ज्ञान दो प्रकार का होता है – प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान| ज्ञान एक ऐसा तत्व है, जो प्रकाश करने वाला होता है, प्रकाशवान हैं| किसी भी प्रकार का ज्ञान क्षयोपशम या क्षायिक भाव से होता है| शस्त्र का ज्ञान भी ज्ञान होता है, जैसे शस्त्र को कैसे चलाना|
ज्ञान आत्मा की उज्जवलता से प्राप्त होता हैं, पर उसका उपयोग कैसे हो? उसके साथ मोह जुडने से व्यक्ति सावध (पापकारी) कार्य कर लेता हैं| ज्ञान की जानकारी निरवध हैं, उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित महाश्रमण समवसरण में श्रद्धालुओं के समक्ष ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहे|
प्रत्यक्ष ज्ञान सीधा आत्मा से जुड़ा हुआ होता है, इन्द्रिय निरपेक्ष होता है| पच्चीस बोल के नवमें बोल में पांच ज्ञान बताये गये हैं| इनमें से मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान परोक्ष ज्ञान है एवं अवधि ज्ञान, मन:पर्वय ज्ञान और केवलज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान हैं|
तीन प्रत्यक्ष ज्ञान में से केवलज्ञान सर्वज्ञ ज्ञान होता है, उसमें चारों ज्ञान विलीन हो जाते हैं, समाहित हो जाते हैं, उनका अस्तित्व नहीं रहता|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि प्रथम चार ज्ञान छद्मस्त के होते हैं| केवलज्ञान छद्मस्त के नहीं होता| अछद्मस्त के ही सबसे बड़ा केवलज्ञान होता है| जिसको केवलज्ञान हो गया, उसकों न आंख से देखने जरूरत रहती है और न ही किताब से पढ़ने की जरूरत होती है, न दूसरे से जानकारी की अपेक्षा रहती है और न ही इन्द्रियों की सहायता की अपेक्षा रहती हैं|
मन:पर्वय ज्ञान भी प्रत्यक्ष ज्ञान हैं, वह सामने वाले के मन की बात को जान सकता हैं| अवधि ज्ञानी भी अतीन्द्रिय ज्ञान से अति सूक्ष्म ज्ञान को जान सकता हैं| वर्तमान युग में आधुनिक उपकरणों के द्वारा एक सीमा तक दूर की चीजों, पदार्थों को जाना जा सकता हैं, पर अतीन्द्रिय ज्ञानी को उपकरणों की आवश्यकता नही रहती, वह सीधा ज्ञान कर लेता हैं|
मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान को इन्द्रिय और मन के सहयोग की अपेक्षा रहती हैं| वर्तमान में इस भरत क्षेत्र में केवलज्ञान किसी को नहीं हो सकता, लेकिन अवधि ज्ञान किसी किसी को हो सकता है, गृहस्थ को भी हो सकता है| देवता और नारकीय जीवों में अवधि ज्ञान या विभंग अज्ञान होता है| वर्तमान में परोक्ष ज्ञान का महत्व है| परोक्ष ज्ञान विधालयों में भी सिखाया जाता है|
परोक्ष ज्ञान का विकास हो
आचार्य श्री ने उपासक प्रशिक्षण शिविर में सहभागी शिविरार्थीयों को संबोधित करते हुए कहा कि उपासक श्रेणी श्रुत ज्ञान, तात्विक ज्ञान, आगमिक ज्ञान और अन्य ग्रन्थों के ज्ञान का विकास करे| उपासक श्रेणी धर्म प्रचारक के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं| उपासक श्रावक कार्यकर्ता है| वे निरवध, लोकोत्तर एवं आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार – प्रसार करे| उपासक पर्युषण काल में ज्ञानाराधना कराने भी विभिन्न क्षेत्रों में जाते हैं| सभी का ज्ञान बढ़ेगा, तो वे दूसरों को ज्ञान दे पायेंगे|
जैसे पैसा बढ़ता है, तो व्यक्ति दान देता है| हमारा भी ज्ञान रूपी धन बढ़े और धनवान बनने का प्रयास करें| मद्दुक श्रावक की तरह ज्ञान धनाढ्य बने| मद्दुक श्रावक श्रावकों के लिए आदर्श थे और उपासकों के लिए तो पुरखों के समान थे|
उन्होंने अन्य तीर्थीयों को भी बड़े सुन्दर ढंग से समझाया| उपासक भी मद्दुक श्रावक की तरह बने, ज्ञान का विकास करे| ज्ञान का कोई आर पार नहीं है, जिस ज्ञान से राग से विराग की ओर बढ़े, मैत्री से भावित बने, तत्व का बोध हो, वह ज्ञान कल्याण कारी है, आध्यात्मिक है| ज्ञान से चेतना का विकास हो सकता है|
ज्ञानशाला के ज्ञानार्थीयों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि बालकों में ज्ञान का विकास हो| ज्ञानशाला में अनेकों श्रावक श्राविकाएं अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं| ज्ञानशाला के माध्यम से बालकों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण किया जा सकता हैं, सद् संस्कार भरे जा सकते हैं| प्रत्येक रविवार को आयोजित 6 से 12 एवं 13 से 24 वर्ष के बालकों एवं किशोरों को आध्यात्मिक टोनिक क्लासेस में भी भाग लेकर संघीय गतिविधियों के साथ ज्ञानार्जन कर सकते हैं|
मुख्य मुनि श्री महावीर कुमार जी ने सामायिक एवं चतुर्विशंति – स्तव के बारे में बताते हुए कहा कि सामायिक मे श्रावक सावध योग त्याग कर सामायिक काल तक मुनि जैसा बन जाता है और समता की साधना करने का प्रयास करता है|
चौबीस तीर्थकरों की स्तृति करने से दर्शन की विशुद्धि हो सकती हैं और विशेष उपलब्धि के रूप में सम्यक् दर्शन, विशुद्ध ज्ञान और विशुद्ध बोधि लाभ प्राप्त हो सकता है, कर्मों का निर्जरण हो सकता है| साध्वी श्री सुषमा कुमारीजी ने तपस्या की प्रेरणा दी| शंचय जैन ने अणुव्रत विश्व भारती, अणुविभा द्वारा संचालित बच्चों के लिए kidzone की जानकारी दी| तेयुप सहमंत्री कमल सावनसुखा ने जैन विद्या कार्यशाला एवं आगामी आयोजित प्रेक्षा ध्यान शिविर की जानकारी दी|
किड्सजोन (KIDZONE) का हुआ उद्घाटन
आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन मंगल पाठ के साथ नन्हें मुन्ने नौनिहालों के लिए बने किड्सजोन (KIDZONE) का हुआ शुभारंभ| इस अवसर पर चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़ के साथ श्रावक समाज उपस्थित था|
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा शिविर कार्यालय पधारे पूज्य प्रवर
चतुर्मास प्रवास स्थल में बने ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के शिविर कार्यालय में पधार कर आचार्यश्री ने कार्यालय कर्मियों को पावन आशीष प्रदान करते हुए मंगलपाठ सुनाया।