एएमकेएम में ज्ञान पंचमी पर हुई सरस्वती आराधना
ज्ञान सोई हुई आत्मशक्ति को जगाता है। ज्ञान धन से बढ़कर कोई धन नहीं है। ज्ञान ही हमें सिद्ध गति में पहुंचाता है। ये विचार एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने व्यक्त किए। वे बुधवार को ज्ञान पंचमी के अवसर पर हुई सरस्वती आराधना के मौके पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। सरस्वती आराधना में बड़ी संख्या में साधकों ने भाग लिया।
उन्होंने कहा ज्ञान का प्रकाश और अज्ञान व मोह का त्याग हमारे एकांत सुख को देने वाले हैं। ज्ञान पंचमी जैन परम्परा में विशेष रूप से ज्ञान आराधना के लिए नियत तिथि है। इसके कई महत्वपूर्ण कारण है। जैन आगमों में ज्ञान के पांच भेद कहे गए। भव्य आत्मा वही होती है जिसका लक्ष्य पंचम ज्ञान को प्राप्त करना है। यह प्रत्येक भव्य आत्मा का लक्ष्य होता है और उसी लक्ष्य के लिए यह आराधना की जाती है। आज के दिन जिसने तप का संकल्प बनाया है, वह निश्चित रूप से इसकी विधि संपन्न करते हैं। इस साधना में भक्तामर स्तोत्र के दो श्लोकों का पाठ हमने किया है। ये स्तोत्र भीतर में रहे हुए अज्ञान को परमात्मा के सामने प्रकट करते हैं। उनसे ज्ञान की रश्मि प्राप्त करने का यह प्रयास है। परमात्मा की यह भक्ति भीतर के ज्ञान के चंद्र को उद्घाटित करने वाली है।
उन्होंने कहा परमात्मा सर्वदर्शी है जिन्होंने अज्ञान का नाश कर पूर्ण ज्ञान प्रकट किया। हमारा ज्ञान अज्ञान से आवृत्त होते रहता है। परमात्मा के जैसा ज्ञान हमारे भीतर भी प्रकट हो, ऐसी आराधना की। परमात्मा का ज्ञान, उनकी प्रज्ञा सभी को अपने वैभव से संपन्न करने वाली है, ऐसा स्तवन हमने किया। आज जो ज्ञान आराधना का भाव लेकर आप उपस्थित हुए हैं, उसके प्रति उत्कृष्ट आस्था, श्रद्धा का अभिनंदन।
उन्होंने कहा जो हमारे यहां सरस्वती का स्पष्ट रूप है, आज हमने उसकी आराधना की। वह सरस्वती, जो हमारे तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित है, वह जिनवाणी के रूप में है। उन्होंने कहा हो सकता है जिस रूप में आपने सरस्वती की आराधना की, वह मिथ्यात्व का रुप है। लेकिन आगमों में उसका स्पष्ट रूप वर्णित कर पूर्वाचार्य ने बताई। वह श्रुत देवता, वह जिनवाणी गुरु मुख पर विराजने वाली हंसिनी है। ऐसी सरस्वती की आराधना का मतलब है भक्ति। आज हमारे द्वारा सरस्वती की जाने- अनजाने बहुत विराधना हो रही है। हमें ज्ञान से ज्यादा मनोरंजन अच्छा लगने लगा है।इसके कारण ज्ञानावरणीय कर्मबंध हो रहे हैं।
उन्होंने कहा जो आत्मा के स्वरूप को प्रकट करने वाला है, वह श्रेष्ठ ज्ञान है। ज्ञान और ज्ञानी के प्रति सम्मान रखें। उनका कभी तिरस्कार न हो। हम सभी ज्ञान का सम्मान करते हुए जीवन में ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ें। इस दौरान युवाचार्यश्री ने उपप्रवर्तिनी कंचनकंवरजी आदि ठाणा के आगामी 2025 के जयनगर बैंगलुरू चातुर्मास की घोषणा की। जयनगर बैंगलुरू से गुरुभक्तगण युवाचार्यश्री के दर्शनार्थ, वंदनार्थ व चातुर्मास की विनंती लेकर उपस्थित हुए। मुनिश्री हितेंद्र ऋषिजी ने बताया कि गुरुवार को खद्दरधारी गणेशीलालजी महाराज की जन्म जयंती एकासन व दया दिवस के रूप में मनाई जाएगी। वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ तमिलनाडु के मंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने बताया कि आगामी 10 नवंबर रविवार को मध्याह्न 2.15 से 4 बजे कृतज्ञता ज्ञापन दिवस मनाया जाएगा। राकेश विनायकिया ने सभा का संचालन किया।