साधु एवं श्रावक समाज को चातुर्मास काल में विशेष साधना करने की दी पावन प्रेरणा
चातुर्मास एक ऐसा समय होता है जो एक प्रकार से बंधन है| साधुओं के लिए चातुर्मास बंधन होता है, क्योंकि उस समय संभवत: विहार नहीं होता| पर यह बंधन भी अच्छे के लिए होता है| बंधन सुरक्षा के लिए होता है| पछेवड़ी (कपड़े) की गांठ भी बंधन है, लेकिन शरीर को आवृत रखने में गांठ सहायक बनती है| इसलिए यह बंधन काम के लिए भी होता है| साधना की दृष्टि से साधुओं एवं श्रावक समाज के लिए सहायक सिद्ध होता है, उपरोक्त विचार माधावरम स्थित जैन तेरापंथ नगर में महाश्रमण सभागार में तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहे|

आचार्य श्री ने कहा श्रावण भाद्रपद में वर्षा होती हैं, तो तपस्या अच्छी हो सकती हैं, पर्युषण भी भाद्रपद में आते हैं| अश्विन में नवरात्रि का समय विशेष साधना के लिए होता है| चातुर्मास काल में साधु-साध्वियों को आगम का विशेष ज्ञान करना चाहिए| सवेरे सवेरे अच्छे ग्रंथ को पढ़ना, व्याख्यान की तैयारी करना, किसी को पढ़ाना, अध्यापन कराना, वाचना देना, गहरा अध्यापन सीखने में लगना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा की बालक-बालिकाएं युवक, महिलाएँ पच्चीस बोल सीखें| साथ में जीव अजीव पुस्तक के द्वारा उसका विवेचन सहित अध्ययन करने का प्रयास करना चाहिए| सवेरे का मुख्य प्रवचन सामायिक के साथ में सुनना चाहिए|
आचार्य श्री ने दर्शन आराधना के बारे में बताते हुए कहा कि हमारी श्रद्धा मजबूत रहनी चाहिए| राग द्वेष मुक्त आत्मा, जिनेश्वर भगवान ने जो बताया वह सत्य ही है|

सच्चाई के प्रति श्रद्धा हमारी दर्शन शुद्धि का उपाय हैं| हर तेरापंथी परिवार के 8 वर्ष के ऊपर को सम्यक्त्व दीक्षा (गुरु धारणा) स्वीकार कर ले, तो सम्यक दर्शन की ओर गति या सम्यग्दर्शन की प्राप्ति या सम्यग्दर्शन की पृष्टि का क्रम बन सकता है|
वीतराग, शुद्ध साधु निर्ग्रंथ के प्रति श्रद्धा, गुरु के प्रति श्रद्धा और केवली प्ररूपित धर्म के प्रति गहरी निष्ठा होनी चाहिए| आदमी को कुछ कठिनाई आ जाए या कुछ भी हो जाए, धन को भले छोड़ दे, लेकिन धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए| देव, गुरु, धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा मजबूत रहनी चाहिए|
आचार्य श्री ने चरित्र आराधना के बारे में बताते हुए कहा कि साधु अपने चरित्र को पृष्ट करने का प्रयास करें| तपस्या करने से साधु के व्रत की पुष्टि होती है और श्रावक के तपस्या करने से निर्जरा का लाभ, संयम होता है|
श्रावक बारह व्रत को समझें| उससे आगे सुमंगल साधना को करें तो चरित्र की समवृद्धि हो सकती हैं| इस तरह साधु अपने चरित्र को पृष्ट करने का, निर्मल रखने का और श्रावक देश चरित्र को बढ़ाने का, पृष्ट करने का प्रयास करें|
आचार्य श्री ने तप आराधना के बारे में कहा चातुर्मास काल में उपवास, बेला, अठाई इत्यादि छोटी – बड़ी तपस्या की साधना करनी चाहिए और आदमी को ज्ञान आराधना, दर्शन आराधना, चरित्र आराधना, तप आराधना में शक्ति का नियोजन करना चाहिए| आचार्य श्री ने श्रावक समाज को विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जिनेश्वर भगवान ने ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप को मोक्ष का मार्ग बताया है| तो चातुर्मास काल में श्रावक समाज को यथोचित समय निकालकर उपासना का, धर्म आराधना का, संतो के ठिकाने में लाभ लेना चाहिए|
ऐसा अभिक्रम, उपक्रम चलाना चाहिए| सवेरे का वृहद मंगल पाठ सुनना चाहिए| शनिवार का वार सामायिक का वार हो, शाम 7:00 से 8:00 बजे बच्चे, बुड्ढे, युवा, महिलाएं सभी को विशेषतया सामायिक करनी चाहिए| रोज करें तो ठीक नहीं तो कम से कम पक्खी का सामूहिक प्रतिक्रमण भाव सहित अवश्य करना चाहिए| यथोचित सेवा आराधना भी करनी चाहिए| यह चातुर्मास काल हम सबके लिए कल्याणकारी हो ऐसी मंगल कामना|
आज चतुर्दशी के अवसर पर सामूहिक हाजिरी का वाचन किया गया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*