एक है चेतना का वलय और एक कषाय का वलय।इन दोनो में अपनी अपनी शक्ति है।चेतना में अपनी शक्ति है और कषाय में अपनी शक्ति है।इन दोनो शक्तियों का संघर्ष है।शुद्ध चेतना कहीं नहीं जाती ।वह तो अपने स्वरूप में स्थित रहती है, शांत रहती है।वह शक्ति रूप है।
शुद्ध चेतना से जो ज्ञान की रश्मियाँ निकलती हैं वे बाहर की और जाती हैं।कषाय की रश्मियाँ उनसे संयुक्त होने का प्रयास करती है।संघर्षण होता है।जब आदमी जागरूक रहता है तब ज्ञान-धारा की शक्ति प्रबल रहती है और वह कषाय की धारा को हटाने लग जाती है,उसके वलय को तोड़ने लग जाती है।
जब आदमी प्रमाद में होता है तब कषाय की धारा प्रबल होती है और वह ज्ञान -धारा को दबोचने का प्रयत्न करती है।दोनो अपने अपने दांव लगाती हैं।जो प्रबल होती है वो जीत जाती हैं और दूसरी हार जाती है।
कभी ऐसी स्थिति भी आती है वह कषाय -चेतना ज्ञान चेतना को दबाए चली जाती है।ऐसा लगता है मानो ज्ञान समाप्त हो गया ।कभी ऐसी स्थिति भी आती है कि ज्ञान -चेतना कषाय चेतना को दबाए चली जाती है और उसे समूल नष्ट कर देती है।