कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा सत्य पुस्तकों में नहीं आत्मा में है। ज्ञान को नहीं ज्ञाता को पाओ। शास्त्र पढक़र आचरण में नहीं उतारा तो भगवान महावीर को पूरा नहीं आधा उतारा है।
अंधेरा दिख रहा है तो प्रकाश करो, दुख है तो सुख की तलाश करो। बेहोशी है इसलिए जाग जाओ। मूर्छा ही दुख है। यदि दुखी हैं तो पिछला हिसाब देखो। पिछले जन्म में दीन-दुखियों की सेवा नहीं की बल्कि उनको सताया होगा।
यदि सुखी हो तो पिछले जन्म में सेवा, दान, पूजा आदि का परिणााम है। जब तक पाप पकता नहीं फल मिलता नहीं। जब पाप पक जाता है जेल में सड़ता है एवं हाथ-पांव गलते हैं। दर-दर भटकता है। जो संतों पर विश्वास नहीं करते, अपने माता-पिता पर विश्वास नहीं रखते एवं सम्मान नहीं करते उनकी दशा हमेशा बुरी ही होती है।
दुखी होने पर उन कारणों को जड़ से उखाड़ फेंकें और प्राणी सेवा, पूजा-भक्ति एवं संत सेवा करना शुरू कर दें। दुख हमेशा सांसारिक क्रियाओं से ही मिलता है फिर भी मानव उन्हीं क्रियाओं को करता है जबकि धार्मिक क्रियाएं जिनसे सुकून मिलता है करने के बारे में नहीं सोचता।
अनिल कासलीवाल
एक दम सही कहा है गुरुदेव ने, हमे आचरण में उतारना चाहिए