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ज्ञान वाणी

ज्ञान के साथ जुड़े चेतना का तार : आचार्य श्री महाश्रमण

ज्ञान के साथ जुड़े चेतना का तार : आचार्य श्री महाश्रमण
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के ग्यारहवें श्लोक के पहले भाग का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि जीव का लक्षण है – उपयोग| जिसमें चेतना का व्यापार हैं, प्रवृत्ति है, वह उपयोग हैं| ज्ञान, दर्शन और एक अपेक्षा से अज्ञान चेतना का व्यापार होता हैं| जो भी आत्मा हैं, उसमे उपयोग होगा और उपयोग शून्य अजीव होता है|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि पच्चीस बोल में नौवा बोल हैं, उपयोग बारह| उनमें पांच ज्ञान में से मतिज्ञान को आभी निबोदिक ज्ञान भी कहा जाता है| पिछले जन्म या जन्मों का ज्ञान (जाति स्मृति ज्ञान) भी मति ज्ञान का अवयव है| संसार के जीतने भी जीव है, उनमें पांच ज्ञान या तीन अज्ञान में से कोई भी अवश्य होगा
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि अज्ञान दो प्रकार का होता हैं – विपरीत ज्ञान, अज्ञान और दूसरा हैं ज्ञान का अभाव, अज्ञान| तात्विक दृष्टि से ज्ञातव्य है एक अज्ञान होता है क्षायोपक्षमिक भाव जन:, उसके तीन प्रकार हैं – मति, श्रुत और विभंग अज्ञान और दूसरा अज्ञान होता है, औदयिक भाव जन:|
   आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि मति, श्रुत, विभंग अज्ञान ये ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपक्षम से उत्पन्न होने वाले होते हैं, इसलिए यह क्षयोपक्षमिक भाव हैं, मिथ्यात्वी के पास होने से ये तीनों अज्ञान कहलाते है एवं सम्यक्त्वी के पास होने पर ये ज्ञान कहलाते हैं| शराब की खाली बोतल में शरबत डालने पर भी लोग उसको शराब समझेंगे, उसी तरह बोध, अवबोध होने पर भी, मिथ्यात्वी के पास होने के कारण वह अज्ञान कहलाता है
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि दूसरा अज्ञान होता है ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कारण से होने वाला यानि ज्ञान का अभाव| प्राणी, आदमी जानता नहीं, वह अभाव, अज्ञान हैं|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि मोक्ष में अवस्थित जो सिद्ध आत्माएँ हैं और संसारी केवलज्ञानी चारित्रात्माएँ, वे सभी सर्व जीवों के छह प्रकारों मे से पांचवें, केवलज्ञानी विभाग में आते हैं| जितने भी मिथ्यात्वी जीव है, वे सारे के सारे अज्ञानी के विभाग में समाविष्ट हो जाते हैं| जिनकी अवधिज्ञान में चेतना का व्यापार हैं, चाहे वे मनुष्य हैं, देव हैं या नारकी जीव, वे सारे के सारे अवधिज्ञानी के विभाग में, जिन साधुओं के मन:पर्वज्ञान होता हैं, वे मन:पर्वज्ञानी विभाग और बाकी के सारे के सारे सम्यक्त्वी जीव मति ज्ञान या श्रुत ज्ञान के विभाग में आते हैं|
  आचार्य श्री ने आगे कहा कि पांच ज्ञानों में मति ज्ञान और श्रुत ज्ञान परोक्ष ज्ञान हैं, इन्द्रियों के सहारे से जो ज्ञान होता है, वह परोक्ष ज्ञान है| अवधिज्ञान, मन:पर्वज्ञान, केवलज्ञान ये अतीन्द्रिय, प्रत्यक्ष ज्ञान हैं, वह सीधा आत्मा से होता हैं|
  आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारी आत्मा में जितना – जितना कर्मों का क्षयोपक्षम होता हैं, ज्ञानावरणीय आदि ज्ञाति कर्मों का क्षयोपक्षम होता हैं तो पूरी आत्मा ज्ञानमय हो जाती हैं, वह हमारा केवलज्ञान हो जाता हैं| यह एक ज्ञान का विषय हैं|
   आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि वर्तमान में हमारे पास केवलज्ञान तो प्रकट हैं ही नहीं,  और अवधिज्ञान किसी – किसी के पास, कभी हो भी सकता हैं, अनुमान के अनुसार भिक्षु स्वामी को संभवतः अवधिज्ञान का अंश हुआ हो सकता हैं| संथारा हो, परिणाम अच्छा हो, तो श्रावक या साधु को अवधिज्ञान हो सकता हैंजाति स्मृति ज्ञान, पुर्वजन्म का ज्ञान भी हो सकता हैं|
  आचार्य श्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि वर्तमान में हमारे लिए श्रुत ज्ञान जरूरी है|  स्वाध्याय, शास्त्र पठन, प्रवचन आदि सुनने, चिन्तन-मनन के द्वारा हम अपने श्रुत ज्ञान का विकास कर सकते हैं| ग्रन्थों को पढ़ने से हमारी भीतर में की चेतना अच्छी जुड़ती हैं, एक लक्ष्य बनता है, उस ज्ञान के प्रति कुछ समर्पण का भाव होता है, तो हमारा श्रुत ज्ञान समृद्ध हो सकता है, वृद्धिंगत हो सकता हैं और कुछ नई नई बातें ध्यान में आ सकती हैं, ज्ञात हो सकती हैं|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि जब हमारा श्रुत ज्ञान के प्रति समर्पण हो जाए, चेतना का तार ज्ञान के साथ जुड़ जाए| ज्यादा पढेंगे, गहराई में मनन होगा, अनुप्रेक्षा होगी, तो हमारा ज्ञान ओर ज्यादा स्पष्ट हो सकेगाजयाचार्य, गुरूदेव तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की बात बताते हुए कहा कि जो बात आगमों में स्पष्ट नहीं है, उसका भी हमारी चेतना निर्मल हो जाए, भावधारा जुड़ जाएं, तो अपनी मनन क्षमता से, तर्क शक्ति से, श्रुत ज्ञान का विकास कर सकते हैं, जीवन में अप्रमदता आ सकती हैं|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि ज्ञान हमारी आंख है, चक्षु है, यह चक्षु हमारा निर्मल रहे| पच्चीस बोल छोटा सा जो थोकड़ा है, वह किशोरों में, युवाओं को याद करना चाहिए, जीव अजीव पुस्तक के द्वारा समझ लेना चाहिए, तो ज्ञान की चेतना प्रस्फुटित हो सकती है और आगे ज्यों ज्यों विकास करेंगे, ज्ञान बढ़ सकता हैं| आज नवरात्रि सम्बन्धी अनुष्ठान भी शुरू हुआ है, तो हम ज्ञान का जितना हो सके विकास करे, यह काम्य हैं|
   इससे पूर्व नमस्कार महामंत्र के मंगल स्मरण के साथ आचार्य श्री ने नवरात्रि के पावन अवसर पर आगमिक मंत्रों के जप से नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान शुभारंभ किया|

    *सत संगति से होता जीवन में अभ्युदय : साध्वी प्रमुखाश्री*

     साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने सत् संगति की प्रेरणा देते हुए कहा किसाधु की संगति से व्यक्ति के जीवन में नया अभ्युदय हो सकता है, व्यथित, भयभीत को त्राण मिलता हैं, न्याय मार्ग, संमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती हैं|

 तपस्वीयों ने तपस्या का प्रत्याख्यान किया| मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ|

   *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
 
 
स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति 

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