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ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं: प्रकाश मुनि जी मा.सा. 

ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं: प्रकाश मुनि जी मा.सा. 

सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद

प्रवर्तक पुज्यू प्रकाश मुनि जी मा.सा. -ज्ञान का कोई पार नही, सम्यक ज्ञान का कोई किनारा नही, ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं? आपको ज्ञान हे! शरीर अलग, आत्मा अलग वह आत्मा का आनन्द ले। ज्ञान अवीकारी होता है, क्योंकि वह विकार में जायगा नहीं। ज्ञान ..ज्ञान रहेगा जीव सम्यकदृष्टि है ज्ञानी है। सुज्ञान सिन्धु गुरुदेव को उपमा दी है ज्ञान के सिन्धु थे।

आचारांग सूत्र – *संति मरण समपेहाय*- सम्यक प्रकार से शांति व मरण को देखे, शांति – मुक्ति मरण अर्थात संसार । दोनो को देखे,, देखना हे सम्यक पुर्वक किसी आग्रह, मत से . बंधकर न देखे। दृष्टि बंधी है तो सत्य नहीं दिखाई देता है।

संसार क्या हे- बंधन से बंधा प्रकार के कारण से ।

मोक्ष क्या है – बंधन से मुक्त, अप्रमादी के कारण से *महोमाय उपमाये*- मोह के स्थान है वहाँ अप्रमादी बनना

जो बुद्धिमानी है वह अप्रमादी होगा। मूढ़ प्रमादी होगा। मूढ़- जानकर के अनजान बनता है। विवेक विकल बना रसनेन्द्रिय विषय में गया, विकार में आया, बंधन में आया मतलब बिगड़ेगा। विकार भाव में उलझते है

वह संसार- दुःख का कारण है, भयंकर दुःख नरक का . उसके बाद तिर्यंच गति का कारण है। मार- *मान* दुःख का कारण । 7वी नरक से निकली आत्मा कभी इंसान नहीं बनती है वह हिंसक पशु बनता है क्योंकि वह कषाय से भरा हुआ आता हे | मनुष्य गति में आने वाले कम है समकदृष्टि जीव, भवी, अभवीजीव जिनके कर्म कम होता ।

 सारा दुःख बंधन में है। *प्रतिक्रियाओं से बच जा बंधन से बच जाओगे।* प्रतिक्रिया की.. कर्म बंधन चालू भविष्य को भी देख! भुत का क्या? आगे बच सकता है, आप भविष्य दृष्टा लोग हे ! बच्चों का भविष्य दृष्टा है, हम आपके भविष्य दृष्टा है। सुधरना अन्दर से हे। *गंगा नहाये मुक्ति मील जाय* मतलब मन साफ हो जाय गंगा को अमृत मानते है! कारण क्या! गंगा हिमालय से निकलती है हिमालय में जड़ी बुटी के पोधे हे उनका अंश पानी में आता है। उस पानी में ताकत आ जाती हे गंगा का पानी खराब नहीं होता है । शरीर शुद्व हो सकता मन नहीं इसके लिये *जीनवाणी की गंगा* काम करेगी। वहाँ आत्मा शुद्ध निर्मल है, वह वाणी तारक है, परमात्मा की वाणी में मूलार्थ में कोई मिलावट नही, सम्यक प्रकार से प्रेक्षा करे ।

उपदेशक मुक्ति का उपदेश करे ।

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