परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय का 12 वां दीक्षांत समारोह नमस्कार महामंत्र एंवम् राष्ट्रगान से शुरू हुआ। कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिंदल ने इसके उद्घाटन की विधिवत घोषणा की। कुलपति श्री बच्छराज दुगङ ने जैन विश्व भारती की गति-प्रगति की जानकारी प्रदान की और बताया कि विश्वविद्यालय के छात्र राष्ट्रपति पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं यह अपने आप में गौरव की बात है। कार्यक्रम में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर एवं श्री सीताराम जिंदल को डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई।
जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के अनुशास्था आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल पाथेय ने फरमाया कि ज्ञान की निष्पत्ति होनी चाहिए। ज्ञान ऐसा हो जो चारों ओर अहिंसा का प्रकाश फैलाए। हिंसा को अंधकार बताते हुए आचार्य प्रवर ने कहा कि दुनिया में अंधकार का अंत हो और अहिंसा की लौ जले। विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों में शिक्षा के साथ संस्कार प्रबलता से बने रहे। शिक्षा से न केवल प्रबुद्धता बढे बल्कि मैत्री की भावना का भी विकास हो और सभी के व्यवहार में अहिंसा मुखर हो।
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने अपने उद्बोधन ने कहा कि आर्ट ऑफ लिविंग के स्थापना के समय से वह आचार्य महाप्रज्ञ जी के संपर्क में रहे और पहला शिविर भी अणुव्रत भवन में किया। वर्तमान युग में जैन धर्म के सिद्धांत अहिंसा की आवश्यकता को बताते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व में इसकी जरूरत है और आचार्य महाश्रमण पदयात्रा के माध्यम से अहिंसा और नैतिकता को जन-जन तक फैला रहे हैं। यह विशिष्ट यात्रा है और उन्होंने अहिंसा यात्रा को व्यापक बनाने के लिए निवेदन किया।
श्री रविशंकर ने आगे कहा कि वर्तमान में परस्पर विश्वास में कमी हो रही है और धर्म पर विश्वास में कमी हो रही है। इस कमी को मिटाने के लिए तनाव मुक्त जीवन और आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा और उन्होंने हिंसा को शक्ति का प्रतीक नहीं बल्कि कमजोरी बताते हुए कहा कि कमजोर व्यक्ति को क्रोध आता है और वह हिंसा की ओर अग्रसर होता है। सभी को आत्मनिष्ठ बनकर अहिंसा और कल्याणकारी बनने की प्रेरणा दी।
मुख्य अतिथि श्री सदानंद गौड़ा ने उपस्थित दोनों धर्मगुरुओं को वंदन करते हुए निवेदन किया कि आप लोग ही भारत को पुनः विश्व गुरु बना सकते हैं और विश्व में शांति और परस्पर सहयोग को बढ़ाने में सहयोग कर सकते हैं।
जिन्दल नैचुरोपैथी के संस्थापक श्रीमान सीताराम जिंदल ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा के माध्यम से हजारों व्यक्तियों को नशा मुक्त हो रहे हैं। इससे केवल एक व्यक्ति का कल्याण नहीं बल्कि अनेक परिवारों का कल्याण हो रहा है। कुलपति दोरैस्वामी अपने वक्तव्य में कहा कि डिग्री प्राप्त करना विद्यार्थी का स्वप्न पूरा होने के समान है परंतु डिग्री प्राप्त होने के बाद विद्यार्थी को दूसरों के कल्याण में भी सहयोग करना चाहिए। उन्होंने जैन सिद्धांतों की सराहना करते हुए अहिंसा यात्रा को विशिष्टतम बताया।
कुलाधिपति श्रीमती सावित्री जिंदल ने अपने वक्तव्य में कहा कि विद्यार्थी विद्या के साथ-साथ अपने आत्मविश्वास को भी बढ़ाएं ताकि वह जीवन में और अधिक ऊंचाइयों को छू सकें।
साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी ने अपने वक्तव्य में फरमाते हुए कहा कि डिग्री प्राप्त करना मंजिल नहीं है यहां से तो सफर की शुरुआत होती है। जीवन में विद्यार्थियों की शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास हो तो ज्ञान का महत्व बढ़ जाता है। विद्या के साथ विनम्रता और सहनशीलता के गुण आ जाए तो व्यक्ति महान बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
कार्यक्रम में विभिन्न विषयों पर शोध करने वाले विद्यार्थियों को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। कार्यक्रम में विशेष सहयोग के लिए जैन विश्व भारती द्वारा श्री कमल कुमार ललवानी एवं आचार्य महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर का सम्मान किया गया।