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ज्ञान की आराधना से जीवन का चंहुमुखी विकास होता है: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

ज्ञान की आराधना से जीवन का चंहुमुखी विकास होता है: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने नवकार मंत्र के चतुर्थ पद नमो उवझायानं के महत्व को बतलाते हुए कहा कि उपाध्याय का सीधा सम्बन्ध ज्ञान के साथ रहता है!

आचार्य संघ के अनुशास्ता होते है तो उपाध्याय संघ मे ज्ञान का शुभ वितरण करते है! यहाँ ज्ञान से सम्बन्ध अध्यात्म ज्ञान से लिया गया है जो पांच प्रकार से उपलब्ध होते है जिसे मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मन : पर्यव ज्ञान व केवल ज्ञान से जाना जाता है! पांच इन्द्रियों व मन के सहयोग से जो ज्ञान प्राप्त होते है उसे मति ज्ञान कहा जाता है! इसके साथ ही जो श्रवण से सुनने से प्राप्त होता है उसे श्रुत ज्ञान कहते है इसी का विस्तार रूप पूर्वभवो का या वर्तमान जीवन की विविध भूत भविष्य मे होने वाले घटनाओं का स्मरण होना अवधि ज्ञान के अंतर्गत आता है! सामने वाले के दिल दिमाग़ मे जो बातें विचार चल रहे है उसके दिल की बातों को सहज मे जान लेना मन : पर्यव ज्ञान कहलाता है तो संसार के समस्त चराचर पदार्थ चार गति चौरासी लाख जीवों के सम्बन्ध मे समस्त गति विधिओ को जान लेना केवल ज्ञान सर्वोतम ज्ञान कहलाता है जो आत्मा को मोक्ष के मुकाम तक पहुंचा देता है!

 

मुनि जी ने आज को पांचम को ज्ञान पांचम या लाभ पांचम बतलाते हुए जीवन मे ज्ञान को सर्वोत्तम साधन कहा!सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा नवकार महामंत्र की विस्तार से विवेचना करते हुए ज्ञान पांचम की कथा का स्वरूप समझाया! जिसमें यह बतलाया गया पूर्व भव की सेठ की पत्नि के बाल बच्चे विद्यालय मे पठन पाठन करने जाते कुछ मंद बुद्धि के कारण अध्यापक लोग प्रताड़ित करते, माँ की असमझ ने बालकों की पढ़ाई बन्द हो जाती है। घर मे ज्ञान का नामों निशान न रहे इस कारण समस्त पढ़ाई लिखाई की वस्तुए आग की भेंट चढ़ जाती, मास्टर को पीटा जाता है फल स्वरूप अगले भव मे सेठानी का जीव गुंगी बहरी के रूप मे कन्या बनती है।

जैनाचार्य के उपदेश से स्वस्थ बनती व् जीवन भर पश्चाताप करके ज्ञान की सेवा करती है! सभा मे महामंत्री उमेश जैन द्वारा सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई

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