चेन्नई : माधावरम में शुक्रवार को हो रही बरसात के कारण जब अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी चतुर्मास परिसर में बने प्रवचन पंडाल में नहीं पधार पाए तो दृढ़ संकल्प के धनी आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को अपने प्रवास कक्ष के बाहरी बरामदे से ही मंगल प्रवचन का श्रवण कराया। श्रद्धालु भी प्रवचन पंडाल से लेकर प्रवास स्थल के समीप तक पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ आचार्यश्री की अमृतवाणी का रसपान किया।
दो दिनों हो रही बरसात शुक्रवार को भी प्रातः हल्के रूप में ही सही नियमित जारी थी। जैन साधुचर्या के अनुसार बरसात में नहीं निकल पाने के कारण प्रातः के मुख्य मंगल प्रवचन के लिए जब आचार्यश्री का प्रवचन पंडाल की ओर पधारना नहीं हो पाया तो दृढ़ संकल्प के धनी आचार्यश्री ने अपने प्रवास को ही प्रवचन पंडाल बना दिया और फिर तो वहीं से मंगल प्रवचन भी सुनाया, श्रद्धालुओं को पावन भी प्रेरणा प्रदान की।
सर्वप्रथम आचार्यश्री ने बरसती बूंदों के बीच अपनी मंगलमयी वाणी से अमृत की वर्षा करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में जीव भी हैं और अजीव भी हैं। अनंत-अनंत जीव इस लोकाकाश में अपनी अवस्थिति लिए हुए हैं। जीवों को दो भागों में बांटा गया है-संसारस्थ जीव और सिद्ध जीव। सिद्ध जीव जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त अवस्था वाले होते हैं। समस्त कर्मों का क्षय कर वे भव्य आत्माएं सिद्धत्व को प्राप्त कर लेती हैं। जहां न शरीर होता है, न वाणी होती है और नहीं मन होता है। वे केवल ज्योतिर्मय आत्माएं होती हैं। संसारस्थ अवस्था से अभी जीवों के मोक्ष में जाने का क्रम अनवरत चल रहा है। अनंत जीव मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं और अनंत जीव मोक्ष को प्राप्त होने वाले हैं और आगे भी होते रहेंगे। प्रश्न यह उठता है कि जब सारे जीव मोक्ष को प्राप्त होकर जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाएंगी तो फिर यह संसार तो जीवों से खाली हो जाएगा? नहीं ऐसा नहीं होगा। छह प्रकार के जीव निकाय में अनंतानंत जीव हैं। इनमें कितने-कितने जीव अभव्य हैं और कितनी आत्माएं ऐसी हैं जो अपने साथ निरंतर कर्मों बंधन कर रही हैं। ऐसी स्थिति में इस संसार का खाली होना संभव नहीं है। अनंत जीव तब भी रहेंगे जब अनंत आत्माएं सिद्धत्व को प्राप्त करेंगी। अभव्य जीव कभी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते तो यह संसार जीवों से रिक्त नहीं सकता।
आचार्यश्री ने छह जीव निकायों का विस्तृत विवेचन करते हुए श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ज्ञान का सार होता है आचार। आदमी को जीवों के बारे में जानकर उनकी हिंसा से बचने का प्रयास करे तो यह जीवों के ज्ञान का सार हो सकता है। ज्ञान के होने के बाद वह ज्ञान आदमी के आचार में उतर जाए तो कितना अच्छा हो सकता है। इसलिए आदमी को निरंतर जागरूकता में रहने का प्रयास करना चाहिए और अनावश्यक रूप से होने वाले जीव हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। चलते समय नीचे देखकर चलना, जमीकंद का त्याग, रात्रि भोजन का त्याग आदि जीवों की हिंसा से बचने उपाय हैं। आदमी जितना अनंत जीवों की हिंसा से बचने का प्रयास करेगा, यह उसके लिए कल्याणकारी बात हो सकती है।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अपने वार्षिक अधिवेशन समापन के संदर्भ में उपस्थित अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल को आचार्यश्री ने पावन प्रेरणा प्रदान की और मंगल आशीष प्रदान करते हुए कहा कि महिलाएं धार्मिक, सामाजिक क्षेत्र में अच्छा विकास करें तो उनका परिवार और उनके बच्चों का भविष्य भी अच्छा बन सकेगा। महिलाओं द्वारा किए जाने तत्त्वज्ञान के विकास प्रयास अच्छा है। मुख्यमुनिश्री ने भी अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि महिलाएं परिवार को अच्छा बनाने के लिए जागरूक होने के साथ बच्चों को संस्कारित बनाएं तो एक अच्छे और सुनहरे भविष्य की स्थापना हो सकती है।
अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती कुमुद कच्छारा व महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और वार्षिक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की। इस दौरान अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के पदाधिकारियों द्वारा श्रीमती माला कातरेला और श्रीमती रश्मि बैद को प्रतिभा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार प्राप्तकर्ताद्वय ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री से उन्हें पावन आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। देवराज मूलचंद नाहर चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल को एक वोल्वो बस भी प्रदान की गई जो अहिंसा यात्रा के साथ महिलाओं को सुव्यवस्था प्रदान करेगी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में 31, 30, 11 और 9 की तपस्या का प्रत्याख्यान भी हुआ।