उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 14वें दिवस उपाध्याय प्रवर ने बताई अष्टप्रवचन माता की महिमा
Sagevaani.com /रायपुर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि कैसे कोई केशी श्रमण और इंद्रभूति बनता है? भगवान पार्श्वनाथ और महावीर ने उन्हें क्या सीख दी थी? जिस सीख से कोई केशी श्रमण और इंद्रभूति बनता है, जिनशासन में उसे प्रवचन माता कहते हैं। परमात्मा ने आठ आयाम की प्रवचन माता कही है। एक माँ में ये आठ आयाम होने चाहिए, तभी उनकी संतानें केशी श्रमण और इंद्रभूति बनती है। और ये आठ आयाम जीवन को किस ऊंचाई पर ले जाते हैं, इसका वर्णन सुधर्म स्वामी श्रुतदेव आराधना के 24, 25 व 26वें अध्याय में किया है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 14वें दिवस सोमवार को उपाध्याय प्रवर ने विजयी जीवनशैली और खुशहाल परिवार के बारे में बताया। आज के लाभार्थी परिवार श्रीमती राजदेवी सुरेश कुमारजी जैन परिवार भिलाई ने लालगंगा पटवा भवन में आने वाले श्रावकों का तिलक लगाकर स्वागत किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि क्या है अष्टप्रवचन माता? परमात्मा का, पूरे जिनशासन का ज्ञान इन अष्टप्रवचन माता में समाहित है।
उन्होंने कहा कि जिसे संपूर्ण, अवधि ज्ञान प्राप्त हो चुका है, अगर वह अष्टप्रवचन माता का पालन नहीं करता है तो नर्क में जाता है। और जिसके पास एक भी आगम का ज्ञान नहीं है, लेकिन वह अष्टप्रवचन माता का सही तरीके से पालन करता है तो वह मोक्ष में जा सकता है। अर्जुन माली को आगम का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके पास अष्टप्रवचन माता थी, इसलिए वह मोक्ष को प्राप्त हुआ। जमाली ने परमात्मा से आगम सीखे थे, लेकिन अष्टप्रवचन माता का परिपालना नहीं कर पाया। अष्टप्रवचन माता में 5 वचन और 3 गुप्ति समाहित हैं।
3 गुप्ति हैं; मनोगुप्ति : अर्थात मन से राग/द्वेष का परिहार करना, वचन गुप्ति : असत् वचन से निवृति कर ध्यान अध्ययन करना, काय गुप्ति : हिंसादि पापों की निवृति पूर्वक कायोत्सर्ग आदि धारण करना। 5 समिति हैं; इर्या समिति : अर्थात प्रासुक मार्ग पर चलना आदि, एषणा समिति : अर्थात निर्दोष आहार ग्रहण की प्रवृति, भाषा समिति : हितकारी एवं प्रमाणिक वचन का बोलना, आदान-निक्षेपण समिति : वस्तु के देख कर उठाना-रखना, प्रतिष्ठापना समिति : कैसे किसी वास्तु को नष्ट करना। और इन आठों आयामों को मिलकर ये प्रवचन माता है। 5 समिति और 3 गुप्ति का जो ज्ञान रखेगा वह कभी नर्क नहीं जा सकता, अन्यथा केवल ज्ञानी भी नर्क जा सकता है।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि किसे कहते हैं बंधु बनाना? भाई कैसा होना चाहिए? भाई की एक ही परिभाषा है, जो संकट में साथ दे। और ऐसे दो भाइयों की कथा उत्तराध्ययन सूत्र के 25 वें अध्याय में हैं। ब्राह्मण भाई जयघोष और विजयघोष की कथा है। एक दिन जयघोष नदी में स्नान करने गया। पर उसने देखा कि एक सर्प ने मुँह में एक मेढ़क को दबा रखा था, वह उसे निगलने की चेष्टा कर रहा था; और उस सर्प को एक कुरर पक्षी निगलने की चेष्टा कर रहा था। ज्यों-ज्यों कुरर सर्प को निगलता त्यों-त्यों सर्प के दवाब से मेढ़क की पीड़ा बढ़ती जाती, वह बुरी तरह तड़पता। इस दृश्य को देखकर उसका मन उद्विग्न हो उठा।
उसने सोचा कि क्या यही जीवन है? उसने जैन श्रमण के पास जाकर श्रामणी दीक्षा ग्रहण करली। कई साल बाद वह विहार करता हुआ वापस नगरी में आया, अपने भाई के निवास पहुंचा और आहार माँगा। विजयघोष उस समय यज्ञ कर रहा था, उसने आहार देने से इंकार कर दिया, कहा कि ये आहार केवल ब्राह्मण के लिए है। विजयघोष ने पूछा कि ब्राह्मण किसे कहते हैं? यज्ञ, नक्षत्र, धर्म का मुख क्या है ? विजयघोष इन प्रश्नों का उत्तर न दे सका। तब जयघोष मुनि ने इनका यथार्थ स्वरूप बताया। जयघोष ने कहा कि कसौटी पर कसे हुए और अग्नि में तपाकर शुद्ध किये हुए स्वर्ण के समान जो निर्मल और तेजस्वी है तथा राग, द्वेष और भय से रहित है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
जो तपस्वी होने से कृश है, जितेन्द्रिय है, जो सुव्रती है, शांत है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। जो प्राणियों को भली प्रकार जानकर मन-वचन-काय से उनकी हिंसा नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। समभाव रखने से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य का पालन करने से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप करने से तपस्वी होता है। जयघोष की बातें सुनकर विजयघोष का संशय दूर हो जाता है, वह महापुरुष को प्रणाम करता है और आहार ग्रहण करने का आग्रह करता है। जयघोष कहता है कि मैं यहाँ आहार लेने के लिए नहीं तुम्हे लेने के लिए आया था। और दोनों भाई संयम की राह पर आगे बढ़ गए।
उपाध्याय प्रवर ने कहा कि उत्तराध्ययन सूत्र के 26 वें अध्याय में सम्यक् आचार व्यवस्था ‘सामायारी’ का वर्णन है। परमात्मा लोगों के साथ जीने के लिए पोटोकॉल देते हैं। परमात्मा ने 10 सूत्र दिए हैं, और जो इन सूत्रों का पालन करता है वह सारे दुखों से मुक्त हो जाता है। ते दस सूत्र हैं : आवश्यकी, नैषेधिकी, आपृच्छना, प्रतिपृच्छना, छन्दना, इच्छाकार, मिथ्याकार, तथाकार, अभ्युत्थान एवं उपसम्पदा। प्रभु कहते हैं कि अगर बाहर जाना है तो परिवार से पूछकर जाओ।
पूछकर जाओगे तो उनका आशीर्वाद अपने साथ ले जाओगे। अंदर आने से पहले बाहर का कचरा छोड़कर अंदर प्रवेश करना। कोई भी काम बिना पूछे मत करना। परिवार को अंधेरे में रखकर कोई काम मत करना। उपलब्धि हुई तो परिवार के साथ साझा करना। मदद करना हो या लेनी हो, अनुमति लेना। कुछ गलत हुआ और गलती का अहसास हो गया तो परिवार के सामने व्यक्त करो। बड़ों के सामने गलती स्वीकार करोगे तो गलती दुबारा नहीं होगी। बड़ों ने कुछ बोला, और आपको बात नहीं जंची, तो उस समय चुपचाप हामी भर दो, उस समय उन्हें गलत सिद्ध करने का प्रयास मत करो। बाद में निवेदन करो और अपनी बात रखो। बड़ों से विवाद नहीं संवाद करो। बाहर से कोई आ रहा है तो उसका स्वागत करो।
आज के लाभार्थी परिवार :
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 7 नवंबर के लाभार्थी परिवार हैं : गौतमचंद उत्तमचंद अशलेश चंद्रप्रकाश गोलछा परिवार, मानकचंद राजेशचंद रजत सुराना परिवार, श्रीमती कुसुम धनराज बेगानी परिवार एवं श्रीमती कांतादेवी-निर्मलचंद वंदिता-नितिन कोठारी परिवार। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।