कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि और ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कर तेरापंथ के सैकड़ों नन्हें सितारे जगमगा उठे। बेंगलुरु के लगभग 33 ज्ञानशालाओं के सैकड़ों ज्ञानार्थियोें ने बेंगलुरु तेरापंथ युवक परिषद द्वारा आयोजित मंत्र दीक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत आचार्यश्री से मंत्र दीक्षा स्वीकार की। इस दौरान आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों से लोगस्स सुना। उनसे 24 तीर्थंकरों के व तेरापंथ के पूर्वाचार्यों के नाम पूछे तो ज्ञानार्थियों ने उसके सही उत्तर प्रदान किए। आचार्यश्री ने पूछा- कहां सीखा? सभी ज्ञानार्थियों ने एक स्वर में जवाब दिया- ज्ञानशाला में।
ज्ञानार्थियों के शिक्षक बने आचार्यश्री ने उनके ज्ञान को सराहा और कहा कि ज्ञानार्थियों ज्ञान का अच्छा विकास हो रहा है। अपने आराध्य के मंगल सन्निधि में पहुंचे ज्ञानार्थियों ने अपनी अपनी विभिन्न प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने आराध्य की अभिवन्दना भी की और अपने आराध्य का ढेर सारा मंगल आशीष प्राप्त किया।
आचार्यश्री ने बच्चों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि ये बालक-बालिकाएं नए पौध के समान हैं। जिस समाज के बच्चे और युवा अच्छे होते हैं तो उस समाज का और राष्ट्र का भविष्य भी अच्छा हो सकता है। ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को अच्छे संस्कार मिल रहे हैं। बच्चों पर ध्यान देना अच्छा होता है। बच्चों को नमस्कार महामंत्र याद हो और उसका वे जप भी करें तो उनका आध्यात्मिक विकास भी हो सकता है।
भौतिकता के माहौल में उनमें आध्यात्मिकता भी रहे तो कुछ संतुलन की बात हो सकती है। बच्चे कहीं भी मांसाहार से दूर रहें, नशे की बुराइयों से बचे रहें तो उनका जीवन अच्छा हो सकता है। यह सारा दृश्य रविवार को आचार्यश्री तुलसी महाप्रज्ञ ज्ञान चेतना सेवा केन्द्र में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में देखने को मिल रहा था।
रविवार का दिन होने के कारण भव्य और विशाल ‘महाश्रमण समवसरण’ जनाकीर्ण बना हुआ था। प्रवचन पंडाल के बाहर भी श्रद्धालुओं की उपस्थिति आज के जनसैलाब को दर्शा रही थी। आचार्यश्री प्रवचन पंडाल में पधारे तो पूरा पंडाल जयघोषों से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री ने ‘सम्बोधि’ आधारित प्रवचनमाला को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भगवान महावीर के राजगृह प्रवास के दौरान अनेकानेक लोग सम्पर्क में आ रहे थे। सम्पर्क का माध्यम वाणी, से दृष्टि और दूरस्थ अवस्था में पत्राचार आदि के माध्यम से होता है।
उसी प्रकार भगवान महावीर से एक युवक का सम्पर्क हुआ। वह युवक राजा का लड़का था। अपने राज्य के लोगों से जानकारी प्राप्त होने पर वह भी भगवान महावीर के पास पहुंचा था। उसने भगवान महावीर की वाणी को सुना और प्रभावित हो गया। उसके भीतर वैराग्य की भावना जागृत हो गई। प्रतिदिन हजारों लोग प्रवचन सुनते हैं, किन्तु प्रवचन का प्रभाव पात्रता के अनुसार पड़ता है। जैसे यदि पात्र साफ हो तो जल निर्मल रहता है और पात्र गंदा हो तो निर्मल जल भी गंदा हो जाता है।
भगवान महावीर की वाणी सुनकर वह राजकुमार प्रभावित हुआ, वैराग्य जागृत हुआ और वह घर से आदेश लेकर भगवान महावीर के पास मुनि मेघकुमार के रूप में दीक्षित हो गया। अपनी दीक्षा के पहले दिन ही मुनि मेघ को रात्रि विश्राम के लिए अनुकूल स्थान न मिलने, अन्य संतों के पैरों से ठेस लगने से विचलित हो उठे और मन ही मन साधुपन छोड़ने का विचार कर लिया।
गिरते हुए सहारा देने वाले महापुरुष होते हैं और भगवान महावीर तो स्वयं भगवान थे। उन्होंने मुनि मेघ की भावनाओं को जाना और कहा मुनि मेघ तुम थोड़े से कष्ट में कमजोर पड़ गए, घबरा गए, विचलित हो गए। तुम अपने पीछले जन्म को याद करो, तुमने कितना सहन किया था।
आचार्यश्री से सम्बोधि प्राप्त कर विशाल जनमेदिनी आह्लादित थी। आचार्यश्री ने मंत्र दीक्षा कार्यक्रम के दौरान ज्ञानार्थियों को विशेष प्रेरणा प्रदान की और उनके जीवन को सुन्दर बनाने की प्रेरणा प्रदान की। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। तेरापंथ युवक परिषद-राजाजीनगर के अध्यक्ष श्री प्रवीण दक, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री विमल कटारिया, श्री सतीश पोकराणा व ज्ञानशाला संयोजिका श्रीमती नीता गादिया ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी।
श्रीमती सरस्वती बाई ने 31 व नेहा फूलफगर ने 30 की तपस्या के साथ अनेक लोगों ने अठाई, नौ आदि तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। इस दौरान जैन विश्व भारती को श्री प्रकाश लोढ़ा परिवार द्वारा साहित्य वाहन भेंट किया गया। जिसकी प्रतीकात्मक चाबी श्री प्रकाश लोढ़ा ने जैन विश्वभारती के पूर्व अध्यक्ष श्री धर्मीचंद लुंकड़, बेंगलुरु चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर आदि को भेंट की।
🏻संप्रसारक🏻
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*जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*