संवत्सरी महापर्व का हुआ आयोजन
चेन्नई. साहुकारपेट के जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा एवं अन्य सहवर्तिनी साध्वीवृंद के सानिध्य में संवत्सरी महापर्व का आयोजन किया गया। इस मौके पर साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा संवत्सरी पर्व महापर्व कहलाता है। पर्यूषण के सात दिन कड़ी तपस्या से आत्मा की शुद्धि होती है तब संवत्सरी का भाव मन में उत्पन्न होता है।
यह भाव आने पर मनुष्य माफ करने से पीछे नहीं हटता। अगर मनुष्य क्षमा करना सीख ले तो उसका जीवन सार्थक हो जाएगा। साध्वी सुविधि ने कहा परिस्थिति कैसी भी हो पर अनमोल जीवन को गंवाना नहीं चाहिए। समय से लडऩे वालों को सफलता अवश्य मिलता है। अगर हाथ, पांव और आंख समेत शरीर के सारे अंग सही हैं तो इसे ही अपनी पूंजी समझो।
अगर मनुष्य का शरीर स्वस्थ होगा तो वह धन कमा सकता है। लेकिन शरीर नहीं होने पर धन कमाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा जो नहीं है उनके लिए रोने से अच्छा कि जो है उसमें खुश रहना सीखे।
उन्होंने कहा कि मनुष्य के पास आंखें हैं तो वह दुनिया का हर कार्य कर सकता है लेकिन उसका उपयोग करने के बजाय जो नहीं है उसके लिए रोता है उनके बारे में सोचो जिनके आंखें ही नहीं हैं। देखने, सुनने और समझने की शक्ति है तो समझो यह दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति है, इसका सही से उपयोग करना सीखे।
घर मे बहुत सारा धन हो अगर परिवार का एक सदस्य अपाहिज हो तो पूरा परिवार परेशान होता है, इसलिए जो है उसका आभार जताएं। इससे पहले क्षमापणा कार्यक्रम की शुरुआत संघ अध्यक्ष आनंदमल छल्लानी के स्वागत भाषण से हुई।
अन्य लोगों ने भी विचार व्यक्त किए। इस मौके पर सुरेश कोठारी, महावीर सिसोदीया, जेपी ललवानी, मंगलचंद खारीवाल, पंकज कोठारी समेत अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।