Share This Post

Featured News / Main Slider / ज्ञान वाणी

जो स्वयं में रहता है वही आत्मा के निकट: साध्वी कंचनकंवर

जो स्वयं में रहता है वही आत्मा के निकट: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. बुधवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर, साध्वी डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में साध्वी डॉ.उदितप्रभा ने कहा पर्व आते हैं और चले जाते हैं लेकिन हमें स्वयं को जांचना चाहिए कि हमने प्रगति की या नहीं। अन्तरमन के दर्पण में झांकना है कि आत्मा से कषायों का मैल साफ कर रहे हैं या नहीं।

हम गतिशील और क्रियाशील हैं पर प्रगतिशील हैं या नहीं। सम्यकत्व से अनादिकाल के भव भ्रमण का छेदन होता है। सम्यकत्व के दिव्य प्रकाश में अपनी आत्मा को जांचें। सम्यकदर्शी हैं तो की गई सभी क्रियाएं सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र हो जाएगी। सम्यक के स्पर्श से संसार सागर में कर्म रूपी मोती भी गल जाएंगे।

राजा श्रेणिक ने समकित से ही तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया। सम्यकदर्शन का प्रवाह अलौकिक है। आगम कहते हैं कि समकित से संसार सीमित हो जाता है और यह निश्चित हो जाता है कि वह जीवात्मा मुक्त होगी ही। अपने देव, गुरु, धर्म पर शंका नहीं हो, आडम्बरों की चाहना न हो। सम्यकत्वी को सावचेत रह दूषणों से सदा बचना चाहिए।

संसार में रहकर घर, परिवार, रिश्ते सारे रोल आसक्ति रहित अदा करने हैं। जेल को महल न समझें। संसार की आसक्ति नहीं होगी तो दुखी नहीं होंगे। सम्यकत्वी व्यक्ति बुराई में से भी अच्छाई ढंूढ़ लेते हैं। पर्यूषण हमें देव, गुरु, धर्म में श्रद्धा और रूची पैदा का संदेश देते हैं। साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा कि आगम वाणी को प्रतिदिन श्रवण करने के तीन लाभ प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं।

पहला- आत्मा के कर्म मैल धुलकर आत्मा स्वच्छ और निर्मल हो जाती है। दूसरा- अहंकार की कठोरता के विनय की कोमलता में बदल जाती है। तीसरा- दूसरों के दोषों को देखने की दृष्टि कम हो जाती है।

पर्यूषण का महापर्व यही संदेश देता है। यह संसार एक कुएं के समान है जिसमें गिरकर हमने पत्थर रूपी संसार, घर, परिवार, स्वजनों को मोहवश पकड़ रखा है, गुरुरूपी राहगीर हमें जिनवाणी रूपी रस्सी से निकालने की चेष्टा करते हैं पर हम नश्वर पदार्थों के मोह से निकलना नहीं चाह रहे। हम छूटने वाली वस्तुओं को भी छोड़ नहीं रहे।

साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने अंतगड़ सूत्र के दूसरे अध्याय का वाचन किया, जिसमें देवकी के पास समान दिखने वाले तीन सिंघाड़ों में विभक्त छह मुनि बारी-बारी से भिक्षा के लिए आते हैं। साध्वी उन्नतिप्रभा ने प्रभु भजन का संगान किया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar