साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा जो स्वयं भी पार होते हैं और दूसरों को भी पार उतारते हैं। जिसकी परमात्मा को पाने एवं स्वर्ग व मोक्ष नगर के मार्ग की ओर जाने की इच्छा हो तथा पुण्य-पाप के अंतर को जानना हो तो समाधि के भंडार सद्गुरु की सेवा करना चाहिए। लोकमान्य संत, वरिष्ठ प्रवर्तक रूपचंद को भावांजलि देते हुए मुनिद्वय ने काव्य पाठ किया।
दीपक के समान ज्ञान के प्रकाश से दे दीप्यमान तथा प्रकट प्रभावी गुरु को जो नहीं मानता, वह मानो पानी का मंथन करके मक्खन पाने की आशा रखता है, जो व्यर्थ है। जो विश्वास करने योग्य हो, मोक्षसुख देने में साक्षीभूत हो, नरक गति के मार्ग को रोकने में समर्थ हो तथा जो धर्म-अधर्म, हित-अहित ,सत्य-असत्य का भेद दिखाने वाले हों, ऐसे छिद्र रहित नाव के समान उत्तम गुरु की सदा सेवा करनी चाहिए।