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जो समवशरण में भगवान देशना देते हैं उसे सिहासन कहते हैं: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया

जो समवशरण में भगवान देशना देते हैं उसे सिहासन कहते हैं: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना ज गुरुणी मैया आदि ठाणा 7 साता पूर्वक विराजमान हैl वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं वह इस प्रकार हैंl

एक बार गौतम स्वामी भगवान महावीर स्वामी से पूछा कि हे भगवान सिहासन कितने प्रकार के होते हैंl तब भगवान ने फरमाया सिहासन तीन प्रकार के होते हैंl जिस आसन पर सिह के माफिक बैठकर जनता को समझावे उसे सिंहासन कहते हैंl

जो समवशरण में भगवान देशना देते हैं उसे सिहासन कहते हैंl उसकी रचना इंद्र करते हैंl दूसरा सिहासन जहां पर राजा बैठकर न्याय करता है उसकी रचना कारिगर लोग करते हैंl

तीसरा सिहासन शादी के मंडप में वर-वधू बैठते हैं वहभी एक ही सिंहासन हैl एक सिंहासन ऐसा जिस पर साधु साध्वी आचार्य बैठते हैं वे संघ के प्रमुख सहायक है यह तो बाहरी सिहासन हैl एक सिहासन समाज का जैसे कि अध्यक्ष मंत्री उपाध्यक्ष आदि पर हमें तो श्रद्धा का सिहासन बनाना है जिसने भी श्रद्धा का सिहासन बना दिया उसका बेड़ा पार हैl

आज की तारीख में चाहे परिवार हो जाए समाज या देश या पूरा विश्व ही क्यों ना हो सभी जगह एक ही सिद्धांत एक ही धर्म को एक ही पैगाम हम सब लोगों के लिए आवश्यक है l वह है प्रेम का धागा प्रेम का पाठ प्रेम की मुरलिया प्रेम का मंदिर अगर यह है तो सब कुछ हैl

 प्रेम तो हमारे जीवन का लक्ष्य हमारे परिवार की कामधेनु है समाज के टूटे हुए संबंधों में जोड़ने वाला चुंबक है प्रेम हमारे लिए संजीवनी औषधि की तरह हेl प्रेमी विश्व में बनते हुए देशों को जोड़ने वाला रामसेतु अगर प्रेम है तो भाई भाई का साथ रहना स्वर्ग दिलाएगाl अगर प्रेम नहीं है तो वे आपस में मिलने की बजाय मुस्कुराने के बदले एक दूसरों को दे मुंह पर लेते हैं तो वह घर घर नहीं परिवार परिवार नहीं वही नरक और श्मशान का ठोर होता हैl सो बंधुओं सभी भाई भाई का दुश्मन ना बनकर मित्र बने यही जीवन की रीति हैl

जय जिनेंद्र जय महावीर, कांता सिसोदिया, भाईंदर

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