कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ जैन भवन के प्रांगण में साध्वी सुधा कंवर म, सा ने फरमाया स्वस्तुति का श्रवण करने से ज्ञाना वर्णीय कर्मों का क्षय होता है, जिसे काल प्रति लेखना कहते हैं! इसका मतलब “समय” से है समय की पहचान होना समय का सही सदुपयोग करना काल प्रति लेखना कहलाता है! जो समय को पहचान लेता है, समय का सदुपयोग करता है वह महान बन जाता है! समय को एक क्षण भी रोक नहीं सकते वह बहती धारा के समान है जो वापस नहीं लौटता! हमें जो कार्य जिस समय करना है उसी समय करना चाहिए! स्वाध्याय सामायिक, साधना, भोजन, नींद, खाना पीना, सब अपने अपने समय पर होना चाहिए, समय बहुमूल्य है अनमोल है!
साध्वी प्रखर वक्ता श्री विजयप्रभा ने कहा कि सत्संग का प्रभाव हर व्यक्ति पर पड़ता है! सत्संग से मनुष्य नर से नारायण बन सकता है! संग से जीवन महान हो जाता है! इसके लिए बुढ़ापे तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है! बुढ़ापे में हाथ, पैर, आंख, कान, नजर सब कमजोर होने लगती है! यहां तक कि मुंह के दांत भी जवाब दे देते हैं! इसलिए सत्संग जवानी में ही कर लेना चाहिए! अंगुलीमाल जिस जंगल में रहता था वह अपने संपर्क में आए सभी लोगों को मारकर उनकी अंगुलियों की माला बनाकर पहनता था! भगवान बुद्ध के संपर्क में आने के बाद जब बुद्ध ने कहा कि मैं तो स्थिर हूं तुम भी स्थिर हो जाओ तुम ज्यादा विचलित हो, अंगुलीमाल माल भगवान बुद्ध के उपदेश सुनकर उनके पैरों में गिर जाता है।
वहां का राजा जब अंगुली माल को पकड़ने के लिए सेना सहित आता है तब भगवान बुद्ध कहते हैं कि जिसे तुम कारावास में डालना चाहते हो वह तो मेरे कदमों में पड़ा है और उसने संयम अंगीकार कर लिया है! सत्संग मैं आने वाले लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते! हमें चाहिए कि हम अच्छे लोगों से मिले अच्छे विचार आदान प्रदान करें और गुरु भगवंतो का अनुसरण करें, धर्म सभा का संचालन संघ के मंत्री देवीचंद बरलोटा ने किया!