नार्थ टाउन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने कहा कि भगवान ने समय मात्र के प्रमाद का निषेध किया है। एक समय भी अनन्त संसार का परिभ्रमण बढ़ा सकता है यदि प्रमाद में व्यतीत किया हो तो ज्ञानीजन कहते है कि जो समय का मूल्य जानता है वास्तव में वही पण्डित है।
गौतम गणधर एक क्षण का प्रमाद नहीं करते थे सदैव भगवान के चरणों में रहते, ज्ञान पिपासु रहते, फिर भी उनके मन में संशय आ गया कि मैं सिद्ध बुद्ध मुक्त होऊंगा या नहीं। महत्व ज्ञान चारित्र दर्शन का होता है अतिशय का नहीं । वन्दन पद को नहीं ज्ञान, दर्शन और चारित्र और तप को किया जाता है। भगवान ने गौतम गणधर के संशय का निवारण करते हुए कहा कि तुम्हारा मेरे प्रति जो राग है वही तुम्हारे सिध्द-बुद्ध होने में बाधक है। गणधर गौतम लब्धि कै भण्डार है ऐसा संसार में कोई दुसरा वर्तमान में नहीं । संसार में हर वस्तु आसानी से उपलब्ध हो सकती है पर मनुष्य जन्म संसार में बहुत दुर्लभ है इसलिए भगवान कहते है मनुष्य जन्म मिलने पर एक क्षण का भी प्रमाद नही करना चाहिए।
ज्ञानी जन कहते है कितना ही समय मिले पर प्रमाद में भान नहीं रहता। इसलिए ज्यादा से ज्यादा धर्म-ध्यान में समय व्यतीत कर कर्म काटना चाहिए। भगवान ने जीवन की तुलना ओस के बुंद से की है। इसलिए शरीर का अहंकार नही करना चाहिए। क्योंकि शरीर में जो दस बल प्राण है, उनकी कोई गारंटी नही है। जब तक इन्द्रियों में शक्ति तब तक जिनवाणी श्रवण कर, धर्म ध्यान कर लो I प्रकृति ने जो प्रदान किया है वही वास्तविक शक्ति है प्रकृति के आगे विज्ञान भी फेल है। टूटी हुई साँस को जोड़ने की शक्ति विज्ञान में भी नहीं है। अन्तिम समय में धर्म- ध्यान करके कर्म निर्जरा कर सद्गति में जीव जा सकता है इसलिए निरन्तर धर्म-चिन्तन में लगे रहना चाहिए।