Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

जो व्यक्ति संतुष्ट है वह सबसे अधिक सुखी है : देवेंद्रसागरसूरि

जो व्यक्ति संतुष्ट है वह सबसे अधिक सुखी है : देवेंद्रसागरसूरि

आचार्य श्री वर्धमानसागरसूरिजी एवं आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी महाराज शुक्रवार को बिन्नी नोर्थटाउन से विहार करते हुए टीविएच लुम्बिनी पधारे, लुम्बिनी जैन संघ में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कहा कि भविष्य के लिए संग्रह ही दुख का कारण है। अगर पशु-पक्षी की तरह मनुष्य भी वर्तमान में जीने लगे तो वह भी दुखी नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि दुख कल की चिंता में है, कल के लिए जो संग्रह हो रहा है, उसमें दुख है। वही दुख मन में असंतोष पैदा करता है, जिस कारण आज प्रत्येक व्यक्ति अपने सिर पर भविष्य की चिंता की गठरी लिए भागे जा रहा है।

पक्षी अपने जीवन के एक-एक क्षण को भोग लेता है और मनुष्य को पूरे जीवन में एक क्षण भी जीने का सौभाग्य नहीं मिलता। कोयल आधी रात में वृक्ष की डाली पर गाती रहती है और मनुष्य उस समय चिंता की अग्नि में जलता रहता है, क्योंकि उसे और चाहिए। उसे जो भी प्राप्त हो जाता है, उससे अधिक पाने के लिए वह और व्यग्र हो जाता है। मजदूर खेत में काम करता है। शाम को पत्‍‌नी-बच्चों के साथ रोटी खाता है और सो जाता है। हाथ का तकिया बनाकर चटाई पर वह गहरी नींद में सो जाता है।

ऐसा इसलिए, क्योंकि वह अपने भविष्य के लिए चिंतित नहीं है, उसे पता है कि कल फिर वह कमा लेगा। उसे इससे अधिक नहीं चाहिए। यही कारण है कि मजदूर कभी भी नींद की गोली खाकर नहीं सोता, लेकिन बड़े लोग जिन्हें बहुत कुछ संग्रह करना है वे उसी चिंता में न भरपेट खा पाते है और न ही पूरी नींद ले पाते हैं। संतोष और असंतोष में मूलत: यही अंतर है। अगर कोई व्यक्ति अपनी प्रतिभा, परिश्रम व ईमानदारी से धन-दौलत व प्रतिष्ठा अर्जित करता है तो यह काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन ऐसे व्यक्ति के मन में संतोष का भाव होना चाहिए। जो व्यक्ति संतुष्ट है वह सबसे अधिक सुखी है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar