चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा मानव की व्याख्या है जो मनन करे। पशु, पक्षी यह नहीं कर सकते। हकीकत में श्रवण के बाद मनन, चिंतन होना चाहिए। हम मनन तो करते हैं लेकिन धन, सुख, वैभव का करते हैं जबकि आत्म कल्याण, आत्महित का मनन करना चाहिए।
हमारे सामने दो चीजें हैं परमात्मा और परमात्मा के प्रति प्रेम। परमात्मा मिल सकते हैं पर उनके प्रति प्रेम नहीं है तो फलदायी नहीं होगा। आराधना के लिए परमात्मा के प्रति प्रेम पैदा करने के प्रयास की जरूरत है। प्रेम बाजार में मिलने वाली वस्तु नहीं है। वह हृदय से प्रकट होती है।
जब संसार की अनंत पदार्थों के प्रति राग टूटेगा तभी परमात्मा से प्रेम होगा। उसके लिए संसार का प्रेम छोडऩा पड़ेगा। संसार के राग को छोडक़र परमात्मा से प्रीति लगानी पड़ेगी। त्रिकाल ज्ञानी पुरुष कर्म और काल परिणति की बातें भी अंतरंगता के साथ जानते हैं। सती सीता को कर्मों के कितने परिणाम भोगने पड़े।
सब सुख सुविधाएं होते हुए भी कर्म परिणाम राजा पलटा सकते हैं। अहंकार होने पर कई रोग पैदा हो जाते हैं। चक्रवर्ती सनतकुमार के अन्दर अहंकार पैदा होने पर शरीर में सोलह रोग पैदा हो गए।
उन्होंने कहा कर्म राजा बहुत निष्ठुर है। पंडित को मूर्ख, शूरवीर को कायर, रुपवान को कुरूप, राजा को रंक बना देता है। यह कर्म राजा अहंकारी का अहंकार भी तो? देते हैं। चक्रवर्ती को भिखारी और भिखारी को चक्रवर्ती बना देते हैं। वह संसार के किसी प्राणी से नहीं डरते।
केवल सदागम यानी सद्गुरु, शास्त्र, आगम से डरते हैं, उनका नाम सुनते ही कांपने लगते हैं। सदागम के भय से कर्म राजा ने जिसको छोड़ दिया वह सद्गति यानी निवृतिनगर चला जाता है।
इसलिए सदागम से लिंक लगा दो, फिर कर्म राजा आपको परेशान नहीं कर सकते। सदागम का प्रभाव इतना है कि उनके प्रति श्रद्धा, प्रशंसा अनुमोदना मात्र से कर्म राजा आपको छोड़ देंगे।
कर्म राजा जानते हैं कि सदागम की ताकत इतनी है कि मुझे भी नीचे गिरा देंगे। इसलिए सदागम की बात का विश्वास, उनकी आज्ञा का पालन, आराधना करो।