श्रीपाल मैनासुन्दरी की कथा सुनाते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कह कि जो हमारे भाग्य में नहीं रहता है, वह आशीर्वाद से मिलता है। जैसे श्रीपाल को मिला। और अपनी खुद की पहचान बनने के लिए वह अपनी माता का आशीर्वाद लेकर अनजानी राहों पर निकल पड़ा। वह सुख सुविधाओं का त्याग कर 12 साल बाद वापस आने का वादा कर राज्य से बाहर चल पड़ता है। वह यह तय करता है कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना। वह प्रत्याख्यान के साथ प्रतिज्ञा लेता है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि अपने जीवन में हम क्या करना है यह तो तय कर लेते हैं, लेकिन क्या नहीं करना है, ये तय नहीं करते है और फेल हो जाते हैं। अगर हम क्या करना है और क्या नहीं करना है तय कर लें तो जीवन में कोई कठनाई नहीं आएगी। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।
रविवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि श्रीपाल इसी प्रतिज्ञा के साथ आगे बढ़ता है। चलते चलते उसे एक व्यक्ति मिलता है, जो बड़ा दुखी नजर आता है। किसी का दुःख अनदेखा कर कभी आगे मत बढ़ना। श्रीपाल रूककर उससे पूछता है कि क्या समस्या है? उसने कहा कि वह साधना कर रहा है, लेकिन साधना पूरी नहीं हो रही है। प्रवीण ऋषि ने कहा कि बिना अनुमोदन के साधना पूरी नहीं हो सकती। साधक के पास अनुमोदन देने वाला कोई नहीं था। श्रीपाल ने कहा कि तुम अपनी साधना शुरू करो, जरूर पूरी होगी। यह सुनकर साधक अपनी साधना शुरू करता है। श्रीपाल ने नवकार मंत्र की शक्ति बरसानी शुरू कर दी और उस साधक की साधना पूरी हो गई।
उसने शस्त्र हरणी और जलतरणी विद्या को सिद्ध कर लिया था, जिसे उसने श्रीपाल के चरणों में अर्पित कर दी। उसने कहा कि आपकी कृपा से मेरी साधना पूरी हुई है, इस विद्या को मैं आपको समर्पित करता हूँ। जिस समय आप दूसरे का काम सुधारते हो, तो भविष्य में तुम्हारा काम सुधरता है। इसके बाद चलते चलते उसे एक और साधक नजर आया। वह रसायन विद्या को साधने का प्रयास कर रहा थे, लेकिन साधना पूरी नहीं हो रही थी। श्रीपाल ने पूछा तो उसने बताया कि वह लोहे को सोना में बदलने वाले रसायन की साधना कर रहा है, लेकिन पूरी नहीं हो रही है। श्रीपाल ने कहा कि तू एक बार फिर प्रयास कर, और वह सफल हो जाता है। साधक अपनी साधना श्रीपाल को देने की जिद करता है लेकिन श्रीपाल कहता है कि तेरा प्रयास है और तेरी साधना है, मैं नहीं ले सकता हूँ। लेकिन वह जिद पकड़ लेता है। श्रीपाल उसके आग्रह पर थोड़ा सा सोना लेकर आगे बढ़ जाता है।
श्रीपाल चलते चलते एक नगर में रुकता है। थोड़ा सा सोना बेचकर वह अपने लिए कपड़े खरीदता है, और भोजन कर एक पेड़ के नीचे सो जाता है। उसी नगर में धवल सेठ अपनी 500 नावों को लेकर व्यापार के लिए निकलने की तैयारी में है, लेकिन उसकी नाव आगे नहीं बढ़ रही है। कोई सयाना बुजुर्ग उसे कहत है कि समुद्र नरबलि मांग रहा है, तभी नाव आगे बढ़ेगी। वह ढेर सारे उपहार लेकर राजा के पास जाता है और अपनी समस्या बताता है। राजा अपने सैनिकों को आदेश देता है कि ऐसा व्यक्ति ढूंढ कर लाओ जो अकेला है, इस राज्य का नहीं है और 36 गुणों से संपन्न है।
सैनिक खोजबीन शुरू करते हैं। ढूंढते ढूंढते श्रीपाल के पास पहुँचते है। वे देखते हैं कि वह अकेला पेड़ के नीचे सो रहा है, उसके साथ कोई नहीं है और वह इस राज्य का भी नहीं है। लेकिन उसके पास शस्त्र देख कर किसी की हिम्मत नहीं हुई आगे बढ़ने की। वहीं सैनिकों की आवाज सुनकर श्रीपाल उठता है। सैनिकों से पूछता है कि क्या माजरा है? सैनिक उसे पूरी बात बताते हैं, तो वह बोलता है चलो तुम्हारे धवल सेठ के पास। सैनिकों के साथ श्रीपाल को आता देख धवल सेठ बड़ा खुश होता है। वह बलि की तैयारी करने का आदेश देता है, लेकिन श्रीपाल मन कर देता है। धवल सेठ सैनिकों को हमला करने का आदेश देता है, लेकिन शस्त्रहरणी विद्या के बल से सैनिकों के शस्त्र श्रीपाल के पास आ जाते हैं। डर के मारे भागने लगते हैं। यह देखकर धवल सेठ दूसरी चाल चलते हुए श्रीपाल के चरण पकड़ लेता है और विनती करता है। श्रीपाल कहता है कि तुझे नरबलि चाहिए या जहाज को निकालना?
सेठ बोलता है कि मेरे जहाज निकल जाएं मैं यही चाहता हूँ। श्रीपाल कहता है चलो तुम्हारे जहाज निकालते हैं। वह जहाज के पास गया और कुछ सोचते हुए जो से लात मारी, और जहाज चल पड़ा। श्रीपाल ने जो लात मारी थी वह पंचपरमेष्ठी की ऊर्जा का प्रहार था। यह देखकर धवल सेठ ख़ुशी से उछाल पड़ता है। वह सोचता है कि क्यों न उस युवक को अपने साथ जहाज में ले चलूं? वह कहता है कि तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हे हर महीने हजार स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। श्रीपाल कहता है कि अगर नौकरी पर रखना है तो मैं करोड़ स्वर्ण मुद्राएं लूँगा, चलेगा? अगर मुझे साथ ले जाना है तो मैं महीने के 100 स्वर्ण मुद्रा किराया दूंगा। यह सुनकर धवल सेठ खुश हो जाता है, और श्रीपाल को लेकर अपनी यात्रा पर निकल जाता है।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।