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जो भय मुक्त हो जाता है, वह भगवान बन जाता है: पुज्य जयतिलक जी म सा

जो भय मुक्त हो जाता है, वह भगवान बन जाता है: पुज्य जयतिलक जी म सा

पुज्य जयतिलक जी म सा ने जैन भवन, रायपुरम में प्रवचन में बताया कि करूणा के सागर भगवान महावीर ने भव्य जीवों पर करुणा कर जिनवाणी प्ररुपित की। जो भय मुक्त हो जाता है, वह भगवान बन जाता है वीतराग का उपदेश स्व एवं पर दोनों को भयमुक्त होने का मार्ग है!

“दाणण सेटठं, अभय प्पयाणं” दानों में सर्वश्रेष्ठ अभय दान है। अतिमुक्तक कुमार जैसा छोटा बालक रोहिणिय जैसा पापी चोर एवं अर्जुनमाली जैसा हिंसक भी अभयदान दे सकता है बस स्वयं के भीतर अभय हो। यदि अभय नहीं दे सकते तो अभय दिलान में अनुमोदन ही कर लो। इससे भी आपको अभय मिलेगा। आप की गति भी सदगति हो जायेगी । अभय के भाव रखे! भावना भाने से अन्तराय भी टूट जायेगी। जीवन सुगम हो जायेगा। श्री कृष्ण वासुदेव ने पूर्व भव में निदान किया था इसको अभय नहीं दे सकते। एक नवकारसी पोरसी भी नहीं कर सकते है। एक दिन मन में विचार आया कि मेरा जीवन व्यर्थ है मैं संयम नहीं अंगीकार कर सकता हूँ।

भगवान नेमिनाथ ने फरमाया आर्तध्यान मत करो तुम अभय दान दे नहीं सकते किंतु उसका अनुमोदन तो कर ही सकते हो ! जब ज्ञात हुआ कि द्वारिका नगरी विनाश को प्राप्त कर होने वाली है तो उन्होंने संयम लेने वालों की अनुमोदना की । रानियाँ राजकुमार, सेनापति, सेना, सेठ, अन्य सभी के दिक्षा में सहयोगी बने। जिन शासन की महती अनुमोदना की ! और क्षादिक सम्यतत्व को प्राप्त कर तीर्थकंर गोत्र का भी बंध कर लिया। किंतु वासुदेव होन के कारण नियमा नरक में जाना पड़ा। किन्तु आगामी भव को सुधार लिया और धर्म तीर्थ के प्रवर्तक बन। ऐसा निदान करने वाला जीव भी अपनी आत्मा का उत्थान कर लिया। देवी देवता सेवा में उपस्थित रहेंगे! सारे शुभ पुदगल उन्हें प्राप्त होंगे । यह सिर्फ अभयदान के अनुमोदना के कारण ही संभव हुआ । प्रसंग चौथे मैथून विरमण व्रत का चल रहा है! देव देवी संबंधी दो कारण तीन योग एवं मनुष्य संबंधी एक कारण तीन योग से प्रत्याख्यान लिए जाते है! स्व पति स्व पत्नी की मर्यादा हो जाती है प्रत्यारवान और आप अन्यथा पापों से बच जाते है!

बहुत से तापस ऐसे होते हैं जो यक्ष यक्षिणी के साथ संबंध करने के लिए माला जपते है तप करते है। यहाँ तक यक्ष दक्षिणी भी काम विकार मनुष्यों को उठाकर ले जाते है! यदि आपके त्याग प्रत्याख्यान हो तो ऐसे पापों से बच सकते है। यदि आपके ऐसे पुर्ण णसे त्याग नहीं करते है तो मर्यादा कर ले तो पापों से बच सकते है। आज तो ऐसा जमाना आ गया है! शुक्रानु भी  बिकने लग गये है। गर्मी भी बिकने लगी। आज के युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति के बहकावे में आकर वालेनटाइन डे, फ्रेन्डस डे आदि मनाते हैं। नशे में बयान क्या से क्या हो जाता है पता ही नहीं चलता है! आजकल तो कन्याओं का व्यापार भी होता है। यहाँ विद्या के मन्दिर कालेज आदि में भी ऐसा दुराचार होता है यदि आप व्रत मर्यादा नहीं करते है तो इन सबकी अनुमोदना का पाप लगता है।

रामायण का प्रसंग जब वनवास से वापिस लौट आने के बाद जन मानस में ऐसी धारणा फैली की सीता पवित्र है कि तो रामजी ने सीता को जंगल में छुड़वा दिया। उस समय राजा वक्र वहाँ से विचरने लगे। सीता धबरा गई! वक्र राजा ने कहाँ बहन घबरा मत” मै व्रतधारी श्रावक हूँ” यह सुनकर सीता को अभय मिला।

अतः व्रतधारण कर ले तो आप दूसरों को भी अभय देते है! संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी ज्ञानचंद कोठारी ने दी ।

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