चेन्नई. कोडम्बाक्कम वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा सुखी जीवन चाहिए तो जो खुद के पास है उसमें ही खुश रहना सीखना होगा। दूसरों की खुशी देखोगे तो और दुखी हो जाओगे। मनुष्य के सुख दुख का कारण वह स्वयं है।
सारा सुख मनुष्य के भीतर हैं लेकिन बाहर इसकी तलाश में भटक रहा है। कर्म अच्छा हो या बुरा समय के हिसाब से फल मिलता रहेगा। समय अच्छा हो तो कभी भी बुरा नही करना और बुरे वक्त में धैर्य रखना चाहिए।
सुख दुख जीवन के दो पहलू है कर्मो के हिसाब से आते जाते रहेंगे। लाख कठिनाई आने के बाद भी मनुष्य को धर्म से पीछे नहीं हटना चाहिए। समय रहते लोग एक दूसरे को देख कर जलते हैं और गलत कर्म करते हैं लेकिन उन कर्मो का जब उदय होता है तो पछतावा होता है।
याद रहे समय रहते अगर अच्छे कर्म नहीं किए तो उनका फल भुगतना ही पड़ेगा। मनुष्य खुद के सद्गुणों पर विश्वास नहीं रखता और गलत काम कर जीवन को दुखी कर लेता है। दुख आने के बाद परमात्मा को दोष देता है।
याद रहे कि मनुष्य अपने सुख दुख का स्वयं करता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में लोग गुप्त दान भी देते हैं तो भी पता चल जाता है।
लेकिन सही मायने में नाम के लिए दान नहीं देना चाहिए। दान देना है तो भाव से दो और भूल जाओ। नाम के लिए दिया हुआ दान सफल नहीं होता। जीवन में आगे जाना है तो पीछे मत देखो।