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ज्ञान वाणी

जो धर्म की शरण में जाता है उसे कोई सजा नहीं दे पाता : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

आचार्य प्रवीण ऋषि जी

चेन्नई. मंगलवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज चेन्नई के पेरन्गुड़ी से विहार कर ईसीआर, कानत्तूर में धर्मीचंद सिंघवी के बीच हाउस पर एएमकेएम ट्रस्ट के ट्रस्टियों और अनेकों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जो धर्म की शरण में जाता है उसे कर्म भी सजा नहीं दे पाते हैं। अर्जुनमाली को श्रेणिक भी सजा नहीं दे पाया और कर्म भी सजा नहीं दे पाए क्योंकि वह धर्म की शरण में आ गए थे।

अच्छे या बुरे कार्य की अनुमोदना और मन की भावनाओं के कारण आत्मा के साथ एक ऐसा अनन्तानुबंधी चक्र शुरू हो जाता है, जिसकी सजा उस आत्मा के साथ-साथ उसके संबंध में आनेवाले कितने ही लोगों को उसकी सजा भुगतनी पड़ती है।

रावण और लक्ष्मण के वैराणुबंध के कारण पूरी लंका और न जाने कितने जीवों को सजा भुगतनी पड़ी थी, जिनका न रावण से वैर था और न लक्ष्मण से, उनका रिश्ता ऐसा ऐसा ही वैर की भावना के अनुमोदन का रहा था। जिसने भी अच्छे या बुरे का अनुमोदन कर लिया उसका रिश्ता उसी के साथ जुड़ जाता है और यही भावनाएं अगले जन्म में रिश्तों के चक्र का कारण बनती है।

हमारे कारण से कोई दूसरा भी गलती करे तो उसकी जिम्मेदारी हमारी होती है। उसके पापकर्म का हम भी कहीं न कहीं हिस्सेदार बनते हैं। अपनी गलती को स्वीकार कर उसे सुधारें।

तैरनेवाले जहाज में बैठकर जिसे तिरना नहीं आता वह भी तिर जाता है। नहीं तो डूबनेवाले जहाज में बैठने से तैरनेवाला भी डूब जाता है। यही जहाज में बैठने का रास्ता अनुमोदना करने का है। अशुभ कार्यों की मन से स्वीकृति देकर जीव बिना पाप किए दूसरों के पापों की सजा भुगतते हैं और धर्म कार्यों की सराहना और अनुमोदना करके बिना धर्म किए भी धर्म का फल प्राप्त करते हैं। एक डूबने वाला जहाज है और एक तिरनेवाला जहाज। धर्मकार्यों की अनुमोदना के तिरानेवाले जहाज में बैठने से कभी बचना मत।

काम करना और बात होती है, काम कराना और बात होती है। लेकिन उससे भी श्रेष्ठतम काम है काम करने और कराने की व्यवस्था निर्माण करना। इसी प्रकार एएमकेएम ट्रस्ट के द्वारा ऐसा जहाज बनने की फैक्ट्री शुरू हो गई है जो एक ऐसा उपक्रम, एक ऐसा अनुष्ठान बन गया है कि न जाने कितने ही जीवों को तिराने का अनुष्ठान बन गया है। लेकिन एक आस्था और विश्वास की ऐसी व्यवस्था बनानी बाकी है कि समाज को लगे कि यह मेरे लिए जीवनस्थान है।

आज बहुत बड़ी जरूरत है कि एएमकेएम ट्रस्ट को लोगों के मन में विश्वास और ऊर्जा प्रदान करने के पॉवर हाउस में बदलने की जहां से समाज को ऊर्जा मिले। यह ऐसा सेंटर होना चाहिए कि जहां से समाज को लगे कि जिस समस्या का समाधान कहीं नहीं मिलता उसका मिलेगा। जिस प्रकार महापुरुष आस्था के केन्द्र हैं और उनके नाम से बने इस ट्रस्ट का स्थान भी उनके नाम और गुणों के अनुरूप होना चाहिए।

तीर्थकर परमात्मा को णमुत्थणं में कहा गया है- रास्ता देनेवाले। एक बार यदि राह बन गई तो सही राह पर चलते-चलत गधा भी मंजिल पर पहुंच जाता है और चक्रव्यूह जैसी राह हो तो अभिमन्यु भी उसमें उलझ जाता है। इस व्यवस्था निर्माण की कीमत को समझें। यह संसार भूलभुलैया का रास्ता है और धर्म सुलझाने का रास्ता। ऐसा सुलझाने की व्यवस्था का निर्माण करना सबसे बड़ी और सुंदरतम व्यवस्था है। डॉ. अंबेडकर ने ऐसी संरचना बनाई कि आज पूरा देश उसके अनुसार चल रहा है और इसे कोई भी भुला नहीं सकता।

एएमकेएम के सभी ट्रस्टियों को उपाध्याय प्रवर ने प्रसाद भेंट प्रदान कर आशीर्वाद दिया।

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