चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा हमारे विचार ही हमारा अस्तित्व हंै। आपके मन में जो विचार चलते हैं उनके अनुसार ही जीवन चलता है। यदि आपको जीवन को बदलना है तो अपने विचारों को बदलो।
श्रवण करने योग्य है तो उसे श्रवण करना चाहिए। इस जगत में श्रवण करने योग्य दुर्लभ है। जो दूसरों की निंदा करे उसे मत सुनो। सिद्धर्षि गणि ने बताया कि श्रवण करने योग्य वचन वीतराग परमात्मा के हंै और उसका कारण वे सर्वज्ञ, सत्य और पूर्ण है।
उन्होंने कहा यदि आपके जीवन को बदलना है तो विचारों को बदलो व सुधारो और अपने जीवन में ढालने की कोशिश करो। उन्होंने कहा नास्तिक श्रेणिक महाराजा ने अपनी पत्नी चेलना की प्रेरणा से विचारों में परिवर्तन किया और अगली चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर बनने का बंध किया।
यदि आपके जीवन को श्रेष्ठ बनाना है तो विचारों को उत्तम और शुभ बनाओ। पंचम आरे में पुण्योदय से प्रवचन श्रवण व प्रभु दर्शन दोनों का अवसर मिला है। जीवन को सदाचारी बनाना है। प्रवचन श्रवण से विचारों का परिवर्तन संभव है।
श्रवण के आपके विचारों को दूसरों में बांटने का लाभ लेना चाहिए। श्रवण में वह शक्ति है जो पढऩे से भी नहीं मिलती। श्रवण में भाव से भीगे हुए शब्द मिलेंगे।
रावण लंका की प्रजा के लिए भगवान था, जब उससे पूछा गया सीता का हरण करने के लिए उन्होंने एक साधु का रुप क्यों लिया, राम का रूप ही क्यों नहीं बनाया तब उन्होंने जवाब दिया राम दुनिया के लिए भगवान थे, यदि राम का रूप ले लेता तो यह विचार ही मेरे मन में नहीं आता।
उन्होंने कहा विचारों को सुधारना है तो इसका एक ही उपाय है प्रवचन श्रवण करो। जो अच्छा श्रोता बनता है वही अच्छा वक्ता बन सकता है।