चेन्नई. जैन मंदिर, जीएन चेट्टी रोड, टी.नगर, चेन्नई में आयोजित धर्मसभा में उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि, तीर्थपूर्ण सुरीश्वरजी महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज उपस्थित रहे। उपाध्याय प्रवर ने श्रद्धानिष्ठ श्रावकों की धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि क्या हम चारों ओर से सुरक्षित है कि नहीं। कर्म हमारे हाथों में है या धर्म हमारे हाथों में है।
जो मनुष्य के वश में नहीं है उसकी वह चर्चा करता है। जो वह कर सकता है, उसे वह करता नहीं और जो कार्य वह नहीं कर सकता उसकी वह बातें करता रहता है, उसको दोष देता रहता है। भाग्य अपने हाथ में नहीं है लेकिन पुरुषार्थ करना हमारे हाथ में है। सामनेवाला क्या बोला इसमें अपनी ऊर्जा लगाने के बजाए आप उसे क्या उत्तर देते हैं यह महत्वपूर्ण है। जिस-जिस ने सामनेवाले पर ही फोकस किया उसकी आंखों से आंसू नहीं रुके और जिसने स्वयं पर फोकस किया वह कभी नहीं रोया।
मैना सुंदरी के पिता द्वारा उसका विवाह कुष्ठ रोगी के साथ करने पर भी वह जीवन में कभी रोई नहीं। जब भी परेशान होओ तो दूसरों पर इल्जाम मत लगाना। एक ही वाक्य कहना कि मैं मेरी सोच के कारण ही दु:खी हुआ। परमात्मा इस सोच को आर्तध्यान का सोच, रौद्रध्यान का सोच कहते हैं। आर्त के कारण से कोई नहीं रोता, लेकिन आर्तध्यान के कारण सभी रोते है। दु:खों का ध्यान करने से ही व्यक्ति दु:खी होता है। आपको कौन-सा ध्यान करना है यह आपके हाथों में है।
जीवन में दु:ख आना या नहीं आना आपके हाथ में नही, लेकिन उस समय में शांति रखनी या तड़पना आपके हाथों में है। आज के समय में बिना किसी कष्ट के भी लोगों के चेहरों से मुस्कान गायब रहती है, इसका कारण एक ही है उसकी सोच। किसी के अपशब्द दु:खी नहीं करते जितना उन्हें बार-बार याद करना दु:खी करता है। जिन्दगी में सुख ज्यादा है और दु:ख कम है लेकिन धर्म ध्यान उसे कहते हैं कि जो दु:ख को याद नहीं करता। जो दु:ख के पलों में भी आत्मा व परमात्मा को याद करता है वह धर्मध्यान करता है। स्वयं को अपना मालिक बनाएं नौकर नहीं।
जो अपने वश में करता है वह करता है वह धर्मात्मा है। जो मिलेगा उसे में बदलकर और सुधारकर जो जीता है वह धर्मात्मा है। जैसा निसर्ग देता है वैसा ही जो जीता है वह पशु कहलाता है। केवल जुबान के विषय में ही नहीं जो जिंदगी में भी इसे अपना स्वभाव बना लेता है वह मनुष्य है।
जो जिंदगी में कैकेयी बनकर जीते हैं उन्हें राम भी सुखी नहीं कर सकता। जो मैना सुंदरी और श्रीपाल बनकर जीते हैं उन्हें कोई भी परेशान नहीं कर सकता। जो ऐसा जीवन जीते हैं उनका नवकार मंत्र सिद्ध होता है। अपने मन से स्वयं को बददुआ न दें।
अपने घर और मन में शांति रखनी हो तो यह मंत्र अपना लें कि मैं किसी की शिकायत नहीं करूंगा। शिकायत करना दुर्योधन का कैरेक्टर है। अपने में आप सुधार कर सकते है, लेकिन शिकायत नहीं कर सकते हो। जिस घर में अपनों की शिकायत बंद हो गई उस घर को किसी की नजर लग नहीं सकती। परिवार में जीवनशास्त्र देखोगे तो वास्तुशास्त्र देखने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अपनों की शिकायत घर और बाहर कहीं न करें। धर्मसभा में अनेक उपनगरीय इलाकों से आए श्रद्धालु उपस्थित रहे।