साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा परमात्मा ने जीवन को सुखी करने के लिए ही दया का उपदेश दिया है और जो दया करते हैं वे अपने जीवन को सुखी बना लेते हैं। जीवों के प्रति दया भाव रखने वालों को बिना मांगे ही बहुत कुछ मिल जाता है।
साधारण से किया गया दान भी जीवन को परम आनंदित कर सकता है। जब भी ऐसा मौका मिले तो आगे आकर दया भाव रखते हुए दान करना चाहिए। दान कभी भी नाम कमाने के उद्देश्य से नहीं करना चाहिए। दान देकर उसे भूल जाना चाहिए। नाम कमाने के लिए किया हुआ दान व्यर्थ हो जाता है। जो मनुष्य दानशील में अपना जीवन लगा देते हैं वे खुद को बदल लेते हैं।
भविष्य का निर्माण वर्तमान में ही होता है। मनुष्य वर्तमान में दान कर अपने भविष्य को बेहतर कर सकता है। वर्तमान में दया भाव रखने वालों का निसंदेह भविष्य अच्छा होगा। समय आने पर अगर जीवन में अनुकूलता है तो दूसरों का भला जरुर करना चाहिए। वर्तमान में करेंगे तभी भविष्य में उत्तम जीवन मिलेगा।
सागरमुनि ने कहा आचरण का जीवन में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। आत्मा के हित के लिए मनुष्य को आचरण करना चाहिए। आचरण के मार्ग पर चल कर जीवन में बदलाव किया जा सकता है। मनुुष्य के अच्छे आचरण ही उसको धर्म की ओर खींचते हैं।
जैसी मनुष्य की दृष्टि होगी उसे वैसी ही सृृष्टि भी मिलेगी, लेकिन जीवन में अगर समझ का प्रकाश है तो वह हमेशा ऊंंचाई पर बढ़ता जाएगा। इस मौके पर अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।