सेलम शंकर नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृतधारा बह रही है जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्रमुनि ने सुख विपाक सूत्र के माध्यम से श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी के सामने सुबाहुकुमार आदि प्रभु से 12 व्रतों का वर्णन श्रवण कर रहे थे, जिसमें तीसरा अदतादान ( स्थूल ) व्रतों की चर्चा कर रहे हैं, चोरी करने का जो त्याग करते हैं, वे सम्मान के पात्र होते हैं ! उन्हें इहलोकिक और पारलौकिक कष्ट देने वाली चोरी का परित्याग करकेआस्तेयव्रत को अपनाने से जीवन शांति मय व्यतीत होता है और सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
साथ ही हमारी आत्मा जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाती है, इसके विपरीत जो चोरी करता है उसका जीवन दुःख और कष्टों से भरा होता है, चोरी करने वाला न आराम से खा सकता है और न सो सकता है। हर समय दिल में घबराहट होती है ,मन अशांत बना रहता है चोरी करने वालों को पुलिस का भी डर लगा रहता है यहां तो दुखी होते हैं।
आगे भी परभव में जैसा कर्म करेंगे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है ! श्रावक के व्रत का गृहस्थ जीवन में पालन अवश्य करना चाहिये ! व्रत पच्चखान हमारे लिये उन्नति के शिखर पर ले जाने वाले होते हैं आत्मा के लिये – जैसे कहीं का मंत्री प्रधानमंत्री गवर्नर राष्ट्रपति आदि जो बनते हैं तब उन्हें शपथ पत्र पढ़ाया जाता है तब वे पद कुर्सी का अधिकारी कहलाते हैं।
वैसे ही त्याग व्रत पच्चखान हमारे लिये शपथ पत्र है , शपथ लेने से ही व्रत धारी के नाम से पहचाने जाते हैं ! संबोध प्रकरण नामक ग्रंथ में कहा है कि – जिसने पहले से अचोर्य व्रत का पालन किया है उसका धन किसी भी स्थान पर खुले खेत में खलीहान में वन जंगल में या दिन में रात में कहीं पर भी रख दो कोई भी उसके हाथ नहीं लगाएंगे वैसे का वैसा पड़ा रहेगा ! कोई भी नहीं लेगा।
कल एक कहानी सुना रहा था अधूरी थी आगे पढ़े – मुनिराज से नियम लिया था कि झूठ नहीं बोलूंगा, उसका शराब छूट गया एक दिन वेश्या के यहां जा रहा था। उसी रास्ते से सामने पिताजी आ गये – लड़के ने सोच्चा पिताजी पूछेंगे तो क्या जवाब दूंगा।
उन्हें कैसे कहूं कि वेश्या के यहां जा रहा हूं बड़े शर्म की बात होगी – इससे तो अच्छा है मैं अब कभी भी वेश्यालय मैं नहीं जाऊंगा ! वापस लोट जाता है ! एक दिन चिंतन हुआ जुला खेलने के लिये पैसा चाहिये तो चोरी करने का मन हुआ तो आधी रात को चला चोरी करने के लिये सोचा कहा चोरी करना जिससे अच्छा माल हाथ लगे गरीब के घर में झोपड़ी में क्या मिलेगा।
सोचा आज राजा के खजाने में चोरी करुँ वह राज महल की ओर चल पड़ा, उधर राजा अपना भेश बदलकर रात्रि गश्त पर निकले थे, रास्ते में दोनों का आमना सामना हो गया, राजा ने पूछा कौन हो ? लड़का बोला चोर हूँ, चोरी करने के लिये जा रहा हूं राजा ने पूछा कहां जाओगे वह बोला राजा के महल में खजाना का ताला तोड़ कर के माल लेकर आऊंगा।
राजा ने सोचा यह कोई सिरफिरा है तभी तो बोल रहा है चोरी करने जा रहा हूं राजा बोला ठीक है जाओ। लड़का छिपते छिपाते पहुंच गया खजाने के पास और ताला तोड़कर अंदर से जवाह रात की पेटी निकाल करके उसमें से थोड़े हीरे और मोती लिये ,बाकी सब वहीं छोड़ दिये।
महलों से निकल कर घर जा रहा था वापस राजा का और उसका मिलाप हो गया, राजा ने पूछा कौन हो कहां से आये और कहां जा रहे हो – लड़का बोला जाते हुए मिला था बताया था चोर हूं राजा के महल में गया था चोरी करके आ रहा हूं , क्या लाये तो उसने हीरे और मोती बताये राजा ने कहा ठीक है जाओ।
दूसरे दिन सुबह केशियर आया और उसने देखा खजाने में चोरी हो गई है उसने सोचा किसी को क्या मालूम पड़ेगा ढोल में पोल चल जायेगी , उसने बाकी के जवाहरात अपने घर पहुंचा दिये और राजा से कहा -आज राज के खजाने में चोरी हो गई और जवाहरात की पेटी खाली पड़ी है राजा ने सोचा रात को चोर मिला था हीरे मोती भी बताये थे पर पेटी में बचे हुवे होना चाहिये वह चोर तो था परंतु सत्यवादी था !
राजा ने आदेश दिया कि नगर में घोषणा करवा दो कि कल रात में जिसने राजमहल के खजाने में चोरी की वह राज सभा हाजिर हो लड़के ने जैसे ही सुना वह तैयार होकर माल सहित पहुंच गया राज्य सभा में राजा ने उसे देखा – दोनों ने एक दूसरे का पहचान लिया ! राजा ने पूछा तुमने खजाने से माल चुराया – लड़का बोला राजन मैंने जितना लिया था वह आपको रास्ते में रात को ही बताया था , इतना बोल करके सारा माल सामने रख दिया राजा और सभासद सभी को आश्चर्य हो रहा था कि यह चोर है या साहूकार , राजा ने केशियर की ओर देखा , सिपाही को भेजकर के कैशियर के घर से जवाहरात मंगाया गया !
राजा ने केशियर की जगह लड़के को केशियर बनाया दिया , केशियर को चोरी के आरोप में सजा मिली लड़के को हाथी पर बेठा करके गाजे बाजे से घर पहुंचाया बाद में लड़के ने सारे व्यसन का त्याग किया, और जीवन में त्याग धर्म को अपनाकर कल्याण किया*
*शेष – अगले प्रवचन में*